पंजाब पिछले दो दशक से नशाखोरी की चपेट में है। मादक पदार्थों की लत युवाओं के भविष्य को अंधकारमय बना रही है। गांवों तक पहुंच चुके तस्कर उनके लिए मौत के सौदागर बन गए हैं। जिला प्रशासन और पुलिस के प्रयास और संकल्प के बावजूद समस्या गहराती चली गई है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में इसे राजनीतिक मुद्दा भी बनाया गया। मगर सच यह है कि नशाखोरी पर लगाम लगाने में किसी दल की राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती। जब भी नशे के खिलाफ अभियान चलता है, तो पर्दे के पीछे से कई लोग बाधक बन जाते हैं।
ऐसे आरोप आम रहे हैं कि मादक पदार्थों की तस्करी करने वालों के तार राजनीति से जुड़े हैं। अकाली दल के नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया की गिरफ्तारी को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। उन पर मादक पदार्थों से अर्जित 540 करोड़ से अधिक राशि का कई माध्यमों से शोधन करने का आरोप है। सवाल है कि पंजाब के युवाओं को खोखला करने में लगे वे कौन लोग हैं, जिन पर काबू पाना मुश्किल बना हुआ है। अब पंजाब की मौजूदा राजनीति और आने वाले विधानसभा चुनाव पर मजीठिया की गिरफ्तारी का जो भी असर पड़े, लेकिन इससे एक व्यापक तंत्र का संकेत जरूर मिलता है।
हालांकि मादक पदार्थों के कारोबार को संरक्षण देने के मामले को लेकर राजनीतिकों पर जब-तब सवाल उठते रहे हैं। लेकिन युवाओं के भविष्य का हवाला देकर राजनीति करने वाले लोग ही अगर नशाखोरी को बढ़ावा देंगे, तो कैसी युवा पीढ़ी तैयार होगी? सतर्कता जांच के बाद मादक पदार्थों के कारोबार में विक्रम सिंह मजीठिया के लिप्त रहने के आरोप ने इस आशंका को बल दिया है कि क्या इस मामले में कुछ और चेहरे छिपे हुए हैं।
आखिर क्या वजह है कि पिछले एक दशक से लगातार अभियान चलाने के बावजूद अपनी जड़ें जमाए नशे के सौदागर काबू नहीं आ रहे? हैरत की बात है कि राज्य में जब भी नशे का मुद्दा उठा, मजीठिया का नाम भी चर्चा में रहा। पिछले विधानसभा चुनाव में भगवंत मान ने उनको निशाने पर लिया था। अब उन पर कार्रवाई के बाद अकाली नेता इसे राजनीतिक प्रतिशोध बता रहे हैं। मगर यह ध्यान रखने की जरूरत होगी कि राजनीतिक बयानबाजी में असल मुद्दा पीछे न छूट जाए।