आर्थिक विकास के लिए समुन्नत सड़कें आवश्यक हैं। इसलिए हर गांव, हर शहर को द्रुतगामी मार्गों से जोड़ने पर बल दिया जाता है। निस्संदेह पिछले कुछ वर्षों में सड़कों के विस्तार, उनकी बेहतरी और पहुंच बढ़ाने की दिशा में काफी काम हुआ है। इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सड़क गलियारों संबंधी आठ नई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इन परियोजनाओं के तहत साढ़े पचास हजार करोड़ से ऊपर की लागत से करीब साढ़े नौ सौ किलोमोटर लंबे मार्ग बनाए जाएंगे। इनमें सबसे अधिक परियोजनाएं उत्तर प्रदेश को मिली हैं, जिनमें कानपुर और अयोध्या में रिंग रोड बनाना शामिल है।

सड़कें बेहतर होंगी, तो औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार होगा

इन गलियारों से विभिन्न राज्यों को जोड़ने वाले राजमार्गों के बीच पड़ने वाले शहरी अवरोधों को दूर कर द्रुतगामी बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। निश्चय ही इन सड़कों के बनने से लंबी दूरी की यात्रा करने वालों और माल ढुलाई में काफी सुविधा होगी। वे शहरों के बीच भीड़ में फंस कर नाहक समय और पैसा बर्बाद करने से बच सकेंगे। औद्योगिक इकाइयों को कच्चा माल लाने और अपने उत्पाद दूसरी जगह भेजने में बहुत आसानी होगी। फिर, सड़कें बेहतर होंगी, तो औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार होगा और निवेश बढ़ने की उम्मीद भी जागेगी।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज जिस तरह औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियां बढ़ी हैं, अर्थव्यवस्था के मामले में भारत लगातार ऊपर के पायदान पर चढ़ता नजर आ रहा है, उसमें सड़कों का ढांचा मजबूत किए बिना आगे बढ़ पाना संभव नहीं है। मगर यह सवाल भी जब-तब उठता रहता है कि आधारभूत ढांचे का अर्थ केवल चौड़ी और तेज रफ्तार सड़कें बना देना भर नहीं होता। उनमें सुरक्षा और अन्य सुविधाओं पर भी समान रूप से ध्यान देने की जरूरत होती है। फिर, जिस ढंग से शहरों का आकार बढ़ रहा है, गांवों से लोगों का शहरों की तरफ पलायन बढ़ रहा है, उसमें उनके बुनियादी ढांचे पर ध्यान कब दिया जाएगा।

यह गंभीर सवाल लगातार उठता रहा है कि सड़कों के विस्तार में जो पर्यावरण और कृषि क्षेत्र की जरूरतों का ध्यान नहीं रखा जाता और उसकी वजह से खासकर पहाड़ों पर जैसी मुसीबतें आए दिन टूट पड़ती हैं, उन पर कब ध्यान दिया जाएगा। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में स्थानीय लोगों और पर्यावरण विशेषज्ञों के तमाम विरोधों के बावजूद द्रुतगामी मार्ग बनाए गए। उसमें तकनीकी तकाजों तक की परवाह नहीं की गई। अंधाधुंध पहाड़ों की कटाई की गई, जिसका नतीजा है कि वहां के ज्यादातर पहाड़ भंगुर हो गए हैं और सामान्य बरसात भी झेल नहीं पाते, धंस जाते हैं।

सड़कों के निर्माण का विरोध नहीं किया जा सकता, मगर उनसे दूसरी बुनियादी सुविधाओं का नुकसान नहीं होना चाहिए। विकास परियोजनाओं के लिए पर्यावरण आदि विभागों से मंजूरी लेने की शर्तें लचीली कर दी गई हैं, जिसके कारण नाहक तोड़-फोड़ और प्रकृति संरक्षण की प्रतिबद्धता धूमिल हुई है। अनेक शहरों में सड़कों के विस्तार के लिए बहुत सारे लोगों के बसे-बसाए घर जमींदोज कर दिए गए, उन्हें अवैध करार दे दिया गया। फिर, सड़कों, पुलों आदि के निर्माण में जरूरी मानकों की भी परवाह अक्सर नहीं देखी जाती, जिसका नतीजा है कि निर्माण के दौरान ही या कुछ दिनों बाद उनके धंसने-टूटने की शिकायतें आनी शुरू हो जाती हैं। विकास परियोजनाओं में भ्रष्टाचार पर लगाम कसना तो एक बड़ा मुद्दा है ही। तरक्की के गलियारे बनाते समय बुनियादी सरोकारों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।