अभी ओड़ीशा के बालासोर में हुए रेल हादसे को लोग भुला भी न पाए थे कि दिल्ली से कामाख्या जा रही नार्थ-ईस्ट एक्सप्रेस बिहार के बक्सर में पटरी से उतर गई। इसमें चार लोगों के मारे जाने और अनेक के घायल होने की पुष्टि हुई है। स्वाभाविक ही इस घटना को लेकर रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था पर फिर से सवाल उठने शुरू हो गए हैं।

गाड़ी की इक्कीस बोगियां पटरी से उतर गईं। प्राथमिक जांच में हादसे की वजह पटरी में खराबी बताई जा रही है। गनीमत है कि इसमें बालासोर जैसा बड़ा हादसा नहीं हुआ, जिसमें दो गाड़ियां परस्पर टकरा गई थीं। मगर इससे रेलवे को अपने बचाव का आधार नहीं मिल जाता। हालांकि घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और असल वजह उसके बाद ही पता चल सकेगी।

मगर हर रेल हादसे के बाद यह एक परिपाटी-सी बन गई है कि मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजे की घोषणा तथा दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन देकर मामले को रफादफा करने की कोशिश की जाती है। हर बार रेल सुरक्षा के संकल्प दोहराए जाते हैं और फिर जल्दी ही हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं।

अक्सर तर्क दिया जाता है कि रेल लाइनों पर गाड़ियों का दबाव लगातार बढ़ता गया है। बहुत सारी रेल लाइनें पुरानी होने की वजह से वे दबाव नहीं झेल पातीं और उनमें खराबी आ जाती है। मगर यह तर्क गले नहीं उतरने वाला। पिछले कुछ वर्षों से रेलगाड़ियों को सुविधाजनक और सुरक्षित बनाने के दावे खूब किए जाते हैं। अनेक तेज रफ्तार गाड़ियां भी चलाई गई हैं।

इस तरह रेल किराए में पिछले कुछ वर्षों में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हुई है। रेलवे स्टेशनों को आधुनिक बनाया जा रहा है। कहा जाता है कि रेलों को हवाई सुविधाओं की तरह बनाया जाएगा। मगर जब तक रेल का सफर सुरक्षित नहीं होगा, उसमें चलने वालों में यह भरोसा पैदा नहीं होगा कि वे अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच जाएंगे, तब तक इन दावों का कोई महत्त्व नहीं रह जाता।

रेल हमारे देश की सबसे बड़ी परिवहन व्यवस्था है। आज भी सामान्य आयवर्ग के लिए यह सबसे सुविधाजनक साधन है। मगर रेल हादसों, उनमें चोरी, डकैती, महिलाओं के साथ बदसलूकी जैसी घटनाओं पर अंकुश न लग पाने के कारण बहुत सारे लोग इसमें सफर करने से हिचकते देखे जाते हैं। हर बजट में रेल को सुरक्षित बनाने का वादा किया जाता है, मगर नतीजा फिर वही ढाक के तीन पात निकलता है।

आज जब हर क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, रेलों को भी सुरक्षित बनाने के मकसद से टक्कररोधी उपकरण लगाने, पटरियों की सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक कंप्यूटरीकृत व्यवस्था विकसित करने की परियोजना शुरू की गई थी। रेलों में आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों की तैनाती बढ़ाने और हर बोगी को अत्याधुनिक संचार प्रणाली से जोड़ने की योजना चलाई गई।

मगर अब भी अगर हर कुछ समय पर रेलें पटरी से उतर जा रही हैं, परस्पर टकरा जाती हैं, तो जाहिर है, सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं का गंभीरता से मूल्यांकन करने की जरूरत है। दुनिया में इतने रेल हादसे कहीं नहीं होते, जितने भारत में होते हैं, जबकि अनेक देशों में हमसे अधिक रफ्तार की गाड़ियां चलती हैं। यह समझ से परे है कि इतने लंबे समय से रेलों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने के वादे किए जा रहे हैं, फिर भी उन देशों से तकनीक लेने की कोशिश क्यों नहीं की जाती।