उन्होंने कहा कि चीन विकास के लिए भारत के साथ काम करने को तैयार है। सीमावर्ती क्षेत्रों में पिछले दो सालों से बने तनावपूर्ण वातावरण को भी वह समाप्त कर स्थिरता लाने के पक्ष में है।

गौरतलब है कि भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए गठित तंत्र में वांग यी और भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल विशेष प्रतिनिधि हैं। यह तंत्र अभी तक निष्क्रिय पड़ा हुआ था। वांग यी के ताजा बयान के बाद अब उसमें कुछ गतिविधियां शुरू होने की उम्मीद बनी है। अब तक दोनों देशों के सेनाधिकारियों के बीच सत्रह दौर की बातचीत हो चुकी है और सभी में चीन का रुख लचीला ही रहा है।

इसी का नतीजा है कि लद्दाख क्षेत्र में करीब दो साल तक गंभीर तनाव रहने के बाद भी सेनाओं को अपने-अपने क्षेत्र में वापस लौटाने पर सहमति बन सकी थी। जब विदेशमंत्री के स्तर से सीमावर्ती इलाकों में स्थिरता कायम करने की बात कही गई है, इस पर जल्दी ही कोई नीतिगत फैसला आने की उम्मीद की जा सकती है।

भारत से लगी चीन सीमा पर कुछ जगहों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है, जिसके चलते सामरिक रणनीति के तहत वहां की सेना इस तरफ आ जाती रही है। वरना चीन भी इस बात को अच्छी तरह समझता है कि भारत के साथ लंबे समय तक युद्ध जैसी स्थिति बनाए रख कर उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला। दुनिया के तमाम देश अब अपनी अर्थव्यवस्थाओं के बल पर ताकतवर बनते हैं, न कि हथियारों और सेना के शक्ति प्रदर्शन से।

कोरोना महामारी ने दुनिया के तमाम देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल कर दी है। चीन की अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ा गई है। लंबे समय तक बंदी रहने के कारण वहां के काम-धंधों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में वह अपने सबसे नजदीकी बड़े बाजार से दुश्मनी मोल लेकर नई चुनौतियों को न्योता नहीं देना चाहेगा।

पिछले दिनों तवांग क्षेत्र में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारत में एक सुर में आवाज उठनी शुरू हो गई थी कि सरकार चीन को सबक सिखाने के लिए कड़े कूटनीतिक कदम उठाए। ये कड़े कदम आयात पर रोक लगाकर घरेलू बाजार को मजबूत बनाने का ही हो सकता है। इस तरह चीन को बहुत बड़ा आघात पहुंच सकता है, जिसके लिए वह कभी तैयार नहीं होगा।

अमेरिका के बाद भारत सबसे अधिक आयात चीन से करता है। अमेरिका से चीन के रिश्ते सदा से तनातनी के हैं। अगर भारत चीन से आयात कम करेगा, तो स्वाभाविक ही अमेरिका से बढ़ाएगा। इसलिए भी चीन नहीं चाहेगा कि अपने हिस्से का बाजार वह अमेरिका के पास जाने दे। फिर भारत जिस तरह जी-20 में मजबूत होकर उभरा है, उसमें वह आर्थिक महाशक्तियों को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच गया है।

चीन ने भारत के पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल आदि पर अपनी पकड़ मजबूत बना कर भारत को घेरने की भरपूर कोशिश की, मगर उसका कोई खास असर नजर नहीं आया। ऐसे में चीन के लिए सीमा पर नाहक तनाव पैदा कर भारत को अशांत रखने की कोशिश बहुत कारगर साबित होने वाली नहीं है। इसलिए अगर वह दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहता है, तो यह दोनों देशों की तरक्की के लिए बेहतर है।