तमाम आशंकाएं और अनुमान सामने होने के बावजूद दिल्ली की हवा ऐसी हो चुकी है जिसे बेहद घातक स्तर तक खतरनाक कहा जा सकता है। मुश्किल यह है कि न सरकार स्थिति के पूरी तरह बिगड़ने तक सक्रिय होती है, न आम लोग प्रदूषण के कारणों को दूर करने में सहयोग देना चाहते हैं। यही वजह है कि पिछले तीन-चार दिनों से स्थिति बिगड़ती चली जाने के बाद सोमवार को दिल्ली सरकार ने वाहनों के लिए सम-विषम व्यवस्था लागू करने की घोषणा की। इसके तहत फिलहाल तेरह से बीस नवंबर तक दिल्ली में यह पाबंदी लागू रहेगी। हवा में घुलते जहर के असर को कम करने के लिए पिछले दिनों उठाए गए बड़े कदमों के क्रम में यह दूसरा फैसला है।
सरकार तब कोई बड़ा फैसला करती है, जब मामला हाथ से निकल जाता है
गौरतलब है कि दिल्ली में प्राथमिक स्कूलों को दस नवंबर तक बंद रखने की घोषणा की गई है। इसके अलावा, राजधानी में इस समस्या के मद्देनजर ग्रैप-4 की पाबंदियां पहले से ही लागू हैं। हर साल ठंड की शुरुआत में हवा के घनीभूत होने के साथ ही पीएम-5 और अन्य घातक सूक्ष्म कणों के असर से जनजीवन बाधित होने लगता है। मगर मुश्किल यह है कि कारण और परिणाम के बारे में लगभग सब साफ होने के बावजूद सरकार तब कोई बड़ा फैसला करती है, जब मामला हाथ से निकलने लगता है। सम-विषम व्यवस्था के बाद दिल्ली की सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों की संख्या में कमी आएगी और उनकी वजह से हवा में घुलने वाले प्रदूषण में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है।
आम लोगों के बीच भी जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए
सवाल है कि प्रदूषण में बढ़ोतरी पर काबू पाने के मामले में अगर सम-विषम सहित अन्य उपायों को इतना ही कारगर माना जाता है तो इन्हें समय रहते चरणबद्ध तरीके से लागू क्यों नहीं किया जाता? क्या ऐसा संभव नहीं है कि इस मौसम में प्रदूषण की आम तस्वीर के संकट में तब्दील होने से पहले हवा में खतरनाक तत्त्व घोलने वाले कारकों पर लगाम लगाने के साथ-साथ आम लोगों के बीच भी जागरूकता अभियान चलाया जाए, उन्हें भी बताया जाए कि इस समस्या से लड़ने में उनकी भी कुछ जिम्मेदारी है?
यों भी तापमान में कमी के साथ अगर हवा में ठहराव की स्थिति बनती है, तो धूल और धुआं के अलावा अन्य तत्त्व मिल कर वायु प्रदूषण की समस्या को जटिल बना देते हैं। इसकी वजह से वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है। पिछले महीने के आखिरी दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक में दिल्ली की तस्वीर बिगड़नी शुरू हुई थी और तब से यह कमोबेश ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में ही है। अब सम-विषम व्यवस्था के अलावा ग्रैप-4 लागू होने के बाद स्थिति में सुधार की संभावना है, लेकिन जब तक इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं निकाला जाएगा, तब तक हर साल इसी तरह तात्कालिक उपायों के जरिए संकट को संभालने की कोशिश करनी पड़ेगी।
अफसोस की बात यह भी है कि वायु प्रदूषण से जिस तरह खतरे पैदा होते हैं, उसके भुक्तभोगी आम लोग होते हैं, मगर जब तक सरकार कोई सख्त नियम नहीं लागू करती, तब तक अपनी ओर से लोग वैसा सुनिश्चित करने की कोशिश शायद ही करते हैं। ऐसे समय में आपात स्थिति को छोड़ कर निजी वाहनों का सीमित प्रयोग करना और सार्वजनिक वाहनों से सफर करने को तरजीह देना क्यों संभव नहीं है? फिलहाल दिल्ली के हालात जैसे दिख रहे हैं, उसमें सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी बनती है, पर इसे संभालने में आम लोगों को भी अपना दायित्व समझना होगा।