ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं, जिनमें कमजोर या गरीब तबकों के लोग सिर्फ इसलिए किसी गंभीर बीमारी का इलाज ठीक से नहीं करा पाते, क्योंकि उसके इलाज का खर्च वहन करना उनकी क्षमता से बाहर होता है। इलाज में सबसे अहम खर्च दवाओं पर होता है, जिनकी कीमतें कई बार सबकी पहुंच में नहीं होतीं। समूची स्वास्थ्य सेवा के संदर्भ में समय के साथ यह एक बड़ी समस्या बनती गई है। दवाओं की बेलगाम कीमतों को लेकर कई तरह के सवाल उठाए जाते हैं।
सरकार ने इस मुश्किल से पार पाने के लिए वैकल्पिक उपाय के तौर पर मरीजों के लिए जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिशें की हैं, लेकिन अब भी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं दिखती। दवाओं की कीमतों और कंपनियों की अनैतिक विपणन के चलन पर काबू पाने से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान गत शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चिकित्सक अगर सिर्फ जेनेरिक दवाएं लिखें तो दवा कंपनियों और चिकित्सकों के बीच रिश्वतखोरी से उपजी इस समस्या को रोका जा सकता है।
काफी कम हो सकती है जेनेरिक दवाओं की कीमत
यह छिपा नहीं है कि दवा कंपनियों के दबाव में डाक्टर मरीजों को आमतौर पर महंगी दवाएं लिखते हैं। जबकि उन्हीं रासायनिक मिश्रण से बनी और समान असर वाली उपयोगी जेनेरिक दवाओं की कीमत काफी कम हो सकती है। दरअसल, मरीजों को जरूरत से ज्यादा दवाएं लिखने के एवज में दवा कंपनियां चिकित्सकों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराती रही हैं, उन्हें प्रकारांतर से रिश्वत भी देती हैं। इस तरह डाक्टरों पर यह दबाव बनता है कि वे मरीजों को किसी खास ब्रांड या कंपनी की ही दवा लेने की सलाह दें।
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चिकित्सा क्षेत्र में पलते इस भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए सरकारें अक्सर कुछ कदम उठाने की घोषणा करती हैं, लेकिन व्यवहार में अब तक इसका कोई ठोस असर सामने नहीं आया है। अनुचित तौर-तरीके अपना कर चिकित्सकों के जरिए दवा कंपनियां जिस तरह बेलगाम मुनाफाखोरी करती हैं, उसका खमियाजा आम लोगों को ही भुगतना पड़ता है। जरूरत इस बात की है कि सरकार समान गुणवत्ता और असर वाली जेनेरिक दवाओं की आसान उपलब्धता और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सुचिंतित कदम उठाए।