इस वक्त जब अमेरिका के पारस्परिक शुल्क थोपने से वाणिज्य-व्यापार पर पड़ने वाले असर को लेकर तरह-तरह के आकलन आ रहे हैं, केंद्र सरकार ने डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी करके एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। डीजल और पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में दो-दो रुपए और रसोई गैस पर पचास रुपए की बढ़ोतरी की गई है। विपक्ष इसे लेकर हमलावर है। उसका कहना है कि इस समय जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पिछले चार वर्षों में सबसे निचले स्तर पर है, तब भी तेल की कीमत क्यों बढ़नी चाहिए।

हालांकि सरकार का कहना है कि उसने उत्पाद शुल्क जरूर बढ़ाया है, पर इसका बोझ आम उपभोक्ता पर नहीं पड़ेगा। यह खर्च तेल कंपनियां वहन करेंगी। इस तरह तेल की कीमतें यथावत बनी रहेंगी। मगर इसे लेकर लोगों का भरोसा इसलिए नहीं बन पा रहा है कि सरकार अपने नफे-नुकसान के मद्देनजर तेल की कीमतों में बदलाव करती रही है। उत्पाद शुल्क का मतलब है कि वह पैसा सीधे केंद्र सरकार के खजाने में जाएगा। तेल कंपनियां कब तक यह बोझ वहन कर पाएंगी, कहना मुश्किल है।

आखिर किस आधार पर सरकार लगाती है पेट्रोल-डीजल इतना भारी शुल्क

पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क को लेकर पहले से विपक्षी दल सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर सरकार इतना भारी शुल्क किस आधार पर लगाती है। इस वक्त कई राज्यों में पेट्रोल की कीमत सौ रुपया प्रति लीटर से ऊपर है। डीजल सौ रुपए के आसपास है। मगर केंद्र सरकार का तर्क है कि इस वक्त जब वैश्विक आर्थिक स्थितियां डांवाडोल हैं, इससे सरकार को अपना राजस्व जुटाने में मदद मिलेगी। हालांकि दस वर्ष पहले जब उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की गई थी, तो तर्क दिया गया था कि इस पैसे से संकट के वक्त के लिए तेल भंडार जमा किया जाएगा। उसके बाद लगातार उत्पाद शुल्क बढ़ाया जाता रहा।

दुनिया में जल्दी ही शुरू हो सकता है मंदी का दौर, अमेरिका की जवाबी शुल्क नीति का दिखने लगा असर

लोकसभा, उत्तर प्रदेश विधानसभा जैसे चुनावों के वक्त जरूर सरकार ने उत्पाद शुल्क कुछ घटा दिए थे। मगर फिर उसने बढ़ा दिया है। सरकार इस बात से अनजान नहीं कि तेल की कीमतें बढ़ने से महंगाई भी बढ़ जाती है। सरकार पहले ही महंगाई से पार पाने में नाकाम साबित हो रही है, उसके बावजूद उसे इस तरह अपना खजाना भरना ज्यादा जरूरी जान पड़ा है, तो जाहिर है, वह महंगाई को लेकर बहुत चिंतित नहीं है। पहले तेल की कीमतों का निर्धारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के अनुसार होता था, पर सरकार ने उस नियम को बदल दिया।

तेल और रसोई गैस की कीमतें पहले ही लोगों की जेब पर पड़ रही हैं भारी

राजस्व जुटाने के लिए सरकार को नए रास्ते तलाशने ही पड़ते हैं, मगर इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसे ही मदों में बार-बार बढ़ोतरी की जाए, जिसका बोझ उठाना पहले से नागरिकों को भारी पड़ रहा हो। तेल और रसोई गैस की कीमतें पहले ही लोगों की जेब पर भारी पड़ रही हैं। महंगाई से पार पाना कठिन बना हुआ है। महंगाई की तुलना में लोगों की आय में बढ़ोतरी नहीं हुई है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की इस पहल का करना चाहिए स्वागत, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए पारदर्शिता जरूरी

पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से केवल लोगों के निजी खर्च नहीं बढ़ते, माल ढुलाई आदि का खर्च भी बढ़ता है, जिसका असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ता है। बड़ी मुश्किल से विनिर्माण क्षेत्र कुछ ऊपर उठने का प्रयास कर रहा है, उसमें यह नई मार उसे परेशान कर सकती है। सरकार जब तक तेल की कीमतों को लेकर कोई व्यावहारिक नीति नहीं बनाती, तब तक यह समस्या सिर उठाती रहेगी।