अब जिस तरह डिजिटल व्यवस्थाओं पर निर्भरता बढ़ती गई है, उसमें व्यक्तिगत ब्योरों की सुरक्षा को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इसके मद्देनजर सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम 2023 पारित किया। हालांकि इसे लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है, मगर अब सरकार ने धीरे-धीरे इसके नियमों को लागू करने की तैयारी कर ली है।

इसके लिए विभिन्न कंपनियों के प्रतिनिधियों से चर्चा करने के बाद डेटा संरक्षण बोर्ड गठित करने सहित नियमों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। सरकार ने कहा है कि कंपनियों को डेटा संरक्षण संबंधी अपनी व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए एक साल का समय दिया जा सकता है। केवल ‘एज-गेटिंग’ में इन नियमों को लागू करने में कुछ अधिक समय लग सकता है।

‘एज-गेटिंग’ वह व्यवस्था है, जिसमें डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले लोग आनलाइन कोई भी विवरण भरते हैं, तो उनके व्यक्तिगत ब्योरे वहां दर्ज हो जाते हैं। व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम को काफी कठोर बनाया गया है, जिसमें नियमों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों पर ढाई सौ करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। अच्छी बात है कि यह कानून बनने के बाद सारे उद्योग उपभोक्ताओं के व्यक्तिगत ब्योरों के संरक्षण के प्रति गंभीरता दिखा रहे हैं।

डिजिटल व्यक्तिगत ब्योरों के दुरुपयोग की शिकायतों पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि लोगों की निजता की सुरक्षा के उपाय तलाशे ही जाने चाहिए। उसके करीब छह साल बाद यह कानून अस्तित्व में आ पाया और अब उसके क्रियान्वन की प्रक्रिया शुरू हो रही है। दरअसल, तमाम विभागों और लोगों के जीवन से जुड़े जरूरी कामों को डिजिटल व्यवस्था से जोड़ने पर इसलिए जोर दिया गया कि कामकाज में आसानी हो, लोगों को बेवजह परेशानी न उठानी पड़े, प्रशासनिक और कारोबारी गतिविधियों में तेजी आए।

मगर इस प्रक्रिया में व्यक्तिगत ब्योरों के संरक्षण के पुख्ता और भरोसेमंद उपाय लागू नहीं किए जा सके। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे डिजिटल सेंधमार सक्रिय हो उठे और लोगों के व्यक्तिगत ब्योरे चुराने लगे। लोगों के निजी डेटा बेचने का कारोबार फलने-फूलने लगा।

स्थिति यह है कि अब न तो आपका फोन नंबर निजी रह गया है और न मेल आइडी। दिन भर अनजाने लोग आपको फोन करके और संदेश भेज कर परेशान करते रहते हैं। यह तो फिर भी ज्यादा चिंता का विषय नहीं माना जा सकता, पर इसके जरिए सेंधमार आपके बैंक खातों और दूसरे निवेशों तक पहुंच बनाने लगे हैं। इस पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती है।

दरअसल, विभिन्न संस्थान, विभाग और कंपनियां छोटे-मोटे कामों के लिए भी आपका व्यक्तिगत ब्योरा दर्ज करती हैं। हालांकि यह ब्योरा उनके डेटा तंत्र में दर्ज रहता है, मगर उसकी सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होता। ज्यादातर मामलों में एक बार व्यक्तिगत ब्योरा दर्ज होने के बाद उसकी कोई जरूरत नहीं रह जाती, इसलिए तमाम जगहों पर वे ब्योरे यों ही छोड़ दिए जाते हैं। वहीं से सेंधमारी करना आसान होता है।

मसलन, स्कूल में दाखिला कराना हो या राशन की दुकान पर पंजीकरण कराना हो, व्यक्तिगत डेटा दर्ज कराया जाता है। मगर उन जगहों पर उन्हें संभालने या एक समय के बाद रद्द करने का कोई प्रबंध नहीं होता, इसलिए वे वर्षों खुले में पड़े रहते हैं। नए कानून के तहत व्यक्तिगत ब्योरों का इस्तेमाल केवल उसी काम के लिए किया जा सकता है, जिसके लिए उन्हें जुटाया गया था। इस तरह इस कानून के क्रियान्वयन से राहत की उम्मीद बनी है।