देश भर में सड़कों पर अतिक्रमण एक गंभीर समस्या बन गई है। इससे न केवल यातायात में बाधा उत्पन्न होती है, बल्कि दुर्घटनाओं की आशंका भी कई गुना बढ़ जाती है। साथ ही पैदल चलने वालों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार और न्यायालय की ओर से समय-समय पर निर्देश जारी किए जाते रहे हैं, लेकिन धरातल पर इन सबका कोई प्रभावी असर नजर नहीं आता है।

इसी तरह के एक मामले में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल में शिमला शहर में यातायात की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए तत्काल सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने स्थानीय प्रशासन को प्रतिबंधित सड़कों के लिए जारी किए गए वाहन पास पर स्थिति रपट दाखिल करने और पासधारकों के मानदंडों एवं श्रेणियों के संबंध में विस्तार से जानकारी देने का निर्देश भी दिया है।

सड़क पर अतिक्रमण कई तरह से हो रहे हैं

सड़कों पर अतिक्रमण के भी कई रूप देखने को मिलते हैं। कहीं दुकानदार सड़क किनारे जमीन पर कब्जा कर अपनी दुकान आगे बढ़ा लेते हैं, तो कुछ लोग सड़क पर ही अपने वाहन खड़े कर देते हैं। कुछ लोग तो फुटपाथ पर ही अपनी दुकान सजा लेते हैं। इस कारण सबसे ज्यादा परेशानी पैदल चलने वालों को होती है। शिमला में वाहनों की वजह से उपजी इस समस्या पर उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लिया है। मगर यह अकेले शिमला की समस्या नहीं है। देश के बाकी हिस्सों में भी शायद ही कहीं सड़क पर पैदल यात्रियों की सुविधा और अधिकारों का ध्यान रखने की जरूरत समझी जाती है।

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कई शहरों-महानगरों में तो पैदल चलने वालों के लिए बने फुटपाथ भी गायब दिखते हैं। नतीजतन, सड़क पर चल रहे लोग हर वक्त एक जोखिम से गुजरते हैं। खुद सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी एक रपट के मुताबिक वर्ष 2023 में सड़क हादसों में 35,221 पैदल यात्रियों की जान चली गई। कायदे से सरकार या न्यायालय के निर्देशों को अमल में लाने की जिम्मेदारी प्रशासनिक अमले की होती है। मगर इस स्तर पर फैली व्यापक लापरवाही का खमियाजा सड़क पर पैदल यात्रियों को भुगतना पड़ता है।