पठानकोट में वायुसेना के ठिकाने पर हुए आतंकवादी हमले ने इस बात की तरफ भी ध्यान खींचा है कि क्या जम्मू-कश्मीर के बाद पंजाब दहशतगर्दों का सबसे बड़ा निशाना होता जा रहा है। पिछले साल जुलाई में गुरदासपुर में हुआ आतंकी हमला बीस साल में दहशतगर्दी की पहली घटना थी। उसके पांच महीने बाद फिर पंजाब में आतंकवाद ने कहर ढाया है। पंजाब की जमीन पर होने के अलावा, दोनों घटनाओं में और भी कई समानताएं लक्षित की जा सकती हैं। दोनों फिदायीन हमले थे, दोनों बार हमलावरों ने अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए वाहन छीने और दोनों बार उनके निशाने पर सामरिक ठिकाने थे। गुरदासपुर में हमलावरों ने एक बस, एक स्वास्थ्य केंद्र और एक पुलिस थाने पर हमला बोला था। पर वे बीएसएफ की एक चौकी को भी निशाना बनाना चाहते थे। दोनों बार वे फौजी वर्दी थे। दोनों घटनाएं ऐसे वक्त हुर्इं जब भारत और पाकिस्तान के बीच, दोनों तरफ के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के बाद, द्विपक्षीय वार्ता शुरू होने की पृष्ठभूमि बन चुकी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काबुल से लौटते हुए अचानक लाहौर पहुंचने और वहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से हुई बातचीत के कोई हफ्ते भर बाद पठानकोट में आतंकी हमला हुआ। गुरदासपुर की घटना रूस के ऊफा शहर में मोदी और शरीफ की मुलाकात के कुछ ही दिन बाद हुई थी। मोदी और शरीफ की अलग-अलग वक्त पर हुई दोनों मुलाकातें इस सहमति के साथ खत्म हुर्इं कि आपसी बातचीत का नया दौर शुरू हो। इसलिए हो सकता है कि आतंकी हमले के पीछे इरादा वार्ता के फैसले को पलीता लगाना भी रहा हो। बहरहाल, गुरदासपुर के बाद अब पठानकोट की घटना ने पंजाब के सामने सुरक्षा संबंधी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सेना की पश्चिमी कमान समेत सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह बड़ी चुनौती है।

पाकिस्तान की सीमा से लगा पंजाब का यह इलाका ऐसा है कि घुसपैठ करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता। नदियों, सहायक नदियों, ऊबड़-खाबड़ जमीन, ढूह और जंगल की वजह से निगरानी रखना कठिन होता है। नतीजतन, घुसपैठियों की बन आती है। फिर, इस इलाके में नशीले पदार्थों की तस्करी ने भी घुसपैठ के लिए अनुकूल स्थिति पैदा की है। जाहिर है, सीमापार आतंकवाद से निपटना है तो जम्मू-कश्मीर के साथ-साथ पंजाब से लगती भारत-पाक सीमा पर भी विशेष चौकसी बरतनी होगी। पंजाब में पुलिस की सतर्कता बढ़ानी होगी और मादक पदार्थों की तस्करी को नेस्तनाबूद करना होगा। पठानकोट के मामले में राज्य पुलिस को काफी आलोचना झेलनी पड़ी है।

राज्य के उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने पंजाब पुलिस का बचाव करते हुए कहा है कि हमले की आशंका के बारे में केंद्र को पहले ही सचेत कर दिया गया था; ढिलाई राज्य के स्तर पर नहीं, केंद्र के स्तर पर हुई है। सुखबीर सिंह बादल ने राज्य की पुलिस के लिए अत्याधुनिक खुफिया उपकरणों की मांग करते हुए केंद्र से यह भी कहा है कि पाकिस्तान से लगती पंजाब की पांच सौ तिरपन किलोमीटर लंबी सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की तैनाती बढ़ाई जाए। अगर पंजाब में गैर-राजग सरकार होती, तो केंद्र और राज्य के लिए एक दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ना आसान था। फिर भी, बीएसएफ की तैनाती और काम में कमी बता कर राज्य ने गेंद केंद्र के पाले में डालने की कोशिश की है। सच तो यह है कि दोनों अपनी जवाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकते।