पठानकोट के भारतीय वायुसेना अड््डे पर आतंकवादी हमले के मामले में पाकिस्तान के गुजरांवाला में एफआईआर दर्ज किया जाना चौंकाऊ बेशक हो, अप्रत्याशित नहीं है। भारत आतंकवाद के पोषक और निर्यातक की भूमिका के लिए पाकिस्तान को तमाम वैश्विक मंचों पर घेरता रहा है। पठानकोट हमले के बाद यह घेराबंदी थोड़ा तेज हुई है। भारतीय जांचकर्ताओं को इस हमले में शामिल आतंकवादियों के तार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े होने और पाकिस्तानी नंबरों से बातचीत के स्पष्ट सबूत मिले थे। तब पाकिस्तान ने कहा था कि वह इस हमले के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। मगर सबूत सौंपे जाने पर पाकिस्तान ने उन्हें नकारने से लेकर नाकाफी ठहराने या जांच की जरूरत बता कर मामले को लटकाने की कोशिश की। अब तमाम वांछित और ठोस सबूत बार-बार मुहैया कराए जाने पर अंतत: पाक को मामला दर्ज करने पर मजबूर होना पड़ा है तो इसे भारतीय जांच एजेंसियों की कामयाबी के रूप में देखा जाना चाहिए। इसका महत्त्व इस्लिए भी बढ़ जाता है कि आतंकवाद-निरोधक कानून के तहत यह एफआईआर किसी आम पुलिसकर्मी या जांचकर्ता की ओर से नहीं बल्कि पाकिस्तानी गृह मंत्रालय के उपसचिव ऐतजाजुद्दीन की शिकायत पर दर्ज की गई है। हालांकि इसमें किसी का नाम फिलहाल शामिल नहीं किया गया है, मगर पुलिस के मुताबिक मामले की अभी और जांच होगी और दोषियों को गिरफ्तार करके कोर्ट में पेश किया जाएगा। यह दरअसल, पठानकोट के हमलावरों के पाकिस्तान की धरती से जुड़े होने की पहली आधिकारिक स्वीकृति है। लेकिन सवाल है कि क्या यह तार्किक परिणति तक पहुंच पाएगी?
इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान का अब तक का रिकार्ड इस मामले में बहुत निराशाजनक रहा है। भारत में हुए अनेक जघन्य आतंकवादी हमलों के स्रोत पाकिस्तान में होने के तथ्य सामने आते रहे हैं। मगर इन हमलों में मारे या पकड़े गए आतंकियों की बातचीत, बरामद हथियारों, गोला-बारूद, पहचानपत्रों आदि को सरासर झुठलाने या उनसे कन्नी काटने में पाकिस्तान को जरा भी संकोच नहीं हुआ है। उलटे कई बार तो वह ऐसे हमलों को भारत की साजिश और सबूतों को भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा गढ़ी गई चीज ठहरा कर नकारता रहा है। मुंबई हमले में गिरफ्तार आतंकवादी अजमल कसाब ने जब उस हमले की पाकिस्तानी पटकथा बयान की तो पाक सरकार ने उसमें सच का नामोनिशान होने से इनकार कर दिया था। जब खुद पाक के पत्रकार कसाब के गांव-घरवालों तक पहुंच गए और भारत ने सेटेलाइट फोन पर मुंबई के हमलावरों की पाकिस्तान में बैठे आकाओं से वार्ता के ब्योरे सामने रखे तो बगलें झांकने से ज्यादा कुछ नहीं किया गया। इसी का नतीजा है कि उस हमले का मुख्य गुनहगार हाफिज सईद न केवल पाकिस्तान में छुट्टा घूमता है बल्कि उसे एक खास हैसियत भी मिली हुई है। पठानकोट हमले के सरगना जैश-ए-मोहमम्द के मुखिया मसूद अजहर के विरुद्ध भी पाक को पर्याप्त प्रमाण दिए गए, मगर उसके खिलाफ कोई कार्रवाई होना तो दूर, मामला भी दर्ज नहीं किया गया है। एक तरफ पाकिस्तान भारत के साथ भरोसा बहाली के लिए विदेश सचिव स्तर की बातचीत दुबारा शुरू करने की उतावली दिखाता है, मगर दूसरी तरफ अपने यहां पलने वाले भारत विरोधी आतंकवाद पर ढुलमुल रवैया अपना कर अमन की तमाम कोशिशों में पलीता लगाता है। बहरहाल, अब अगर पठानकोट मामले में एफआईआर दर्ज कर पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाने का संकेत दिया है तो भारत उसे संदेह का लाभ देकर और इंतजार करने के सिवा क्या कर सकता है!