पठानकोट वायुसेना अड्डे पर आतंकी हमले को लेकर गृह मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की टिप्पणी ने एक बार फिर सरकार को असहज किया है। समिति ने कहा है कि देश के आतंकवाद निरोधक प्रतिष्ठानों में कोई चीज गंभीर रूप से गलत है। उसने पंजाब पुलिस के रवैए पर भी सवाल उठाए हैं। मगर सबसे अधिक आश्चर्य इस बात पर जताया है कि सरकार ने पठानकोट हमले की जांच में पाकिस्तानी टीम को क्यों शामिल किया। ये सवाल शुरू से उठाए जा रहे हैं, पर सरकार के पास इनके जवाब नहीं हैं। पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमले की सूचना सुरक्षा बलों को पहले से थी। आतंकी हमलावरों और उनके संचालकों के बीच फोन पर होने वाली बातचीत को भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पहले ही सुन लिया था। इसके बावजूद आतंकी सीमा पार कर भारत में घुस आए और अतिसुरक्षित माने जाने वाले वायुसेना अड्डे पर हमला कर दिया। यह सवाल भी अनुत्तरित है कि जब आतंकियों ने पंजाब पुलिस के एक अधिकारी और उसके दोस्तों का अपहरण किया तो पंजाब पुलिस उसकी जांच सामान्य घटना की तरह क्यों करती रही। फिर यह भी कि क्यों आतंकियों ने पुलिस अधिकारी और उसके दोस्तों को छोड़ दिया। जाहिर है, इससे पंजाब पुलिस के कामकाज के तरीके पर आशंका पैदा होती है। जिस तरह आतंकियों ने सीमा पार की और वायुसेना परिसर में घुस कर वे लंबे समय तक हमला करते रहे, उसे सामान्य घटना नहीं माना जा सकता। इसलिए गृहमंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की आतंकवाद निरोधक प्रतिष्ठानों में कुछ गलत होने की आशंका निराधार नहीं कही जा सकती।
यों सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद बनाने का दम भरती है, पर आतंकी गतिविधियों पर नकेल कसना उसके लिए लगातार कठिन होता गया है। यह भी छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तान दहशतगर्दी को बढ़ावा देता आया है। पठानकोट हमले में आतंकियों की बातचीत से स्पष्ट था कि उनका संबंध जैश-ए-मोहम्मद से था। उनके पास से बरामद गोला-बारूद पर भी पाकिस्तान का चिह्न अंकित था। फिर भी भारत सरकार ने शायद यह सोच कर पाकिस्तान को जांच में सहभागी बनाया कि हर बार की तरह इस बार भी वह सबूतों को सिरे से नकार न सके। मगर इससे एक तरह से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सदस्य को भारतीय वायुसेना के अड्डे के भीतर घुसने का मौका मिल गया। छिपी बात नहीं है कि पाकिस्तान की तरफ से आतंकवादियों को मिल रहे प्रोत्साहन में आइएसआइ का बड़ा हाथ है। फिर, पठानकोट हमले की जांच का हासिल भी क्या हुआ, पाकिस्तान ने अभी तक उसे लेकर कोई उल्लेखनीय कार्रवाई नहीं की है। निस्संदेह यह भारत के लिए बड़ा सबक था। मगर सुरक्षा संबंधी दूसरे पहलुओं से भी सबक लेने की जरूरत है कि खुफिया सूचनाएं उपलब्ध होने के बावजूद आतंकी वायुसेना ठिकाने पर हमला करने में कैसे कामयाब हो गए और सुरक्षा बल समय पर तैयारी कर पाने में नाकाम रहे। अनेक उदाहरण हैं जब सुरक्षा तंत्र में ही कुछ ऐसे लोगों की शिनाख्त की गई, जिनके तार सीमा पार से जुड़े थे। पंजाब पुलिस के अधिकारी के अपहरण और फिर नाटकीय ढंग से उसे छोड़ दिए जाने से भी ऐसी ही आशंका को बल मिला। ऐसे में सुरक्षा तंत्र की कमजोर कड़ियों की पहचान के लिए क्या उपाय होने चाहिए, इस पर सरकार के विचार करने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।

