संसद में किसी मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्षी दलों के बीच मतांतर या विरोध एक स्वाभाविक स्थिति है और इस पर बहस एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया। विडंबना है कि कई बार संसद की कार्यवाही के बीच नियमों की व्याख्या अपने मुताबिक करने की कोशिश की जाती है। इसी हफ्ते सोमवार को राज्यसभा में दिल्ली सेवा विधेयक पारित हो गया।
मगर इस दौरान आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा पर गंभीर आरोप लगे। अगर वास्तव में नियमों को ताक पर रख कर ऐसा किया गया, तो संसद में इसे फर्जीवाड़े के तौर पर दर्ज किया जाएगा। दरअसल, राघव चड्ढा संसद में दिल्ली सेवा विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने का प्रस्ताव लेकर आए थे, जिसके लिए पांच सांसदों के नाम शामिल किए गए थे।
मगर उन पांचों सांसदों का साफतौर पर कहना है कि उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए। यही नहीं, उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी तक नहीं थी कि उनके नाम इस प्रस्ताव में शामिल किए जा रहे हैं।
जाहिर है, यह बेहद गंभीर आरोप है कि सांसदों की सहमति के बगैर किसी प्रस्ताव में उनका नाम शामिल कर लिया गया और ऐसा करने का आरोप खुद राज्यसभा के सांसद राघव चड्ढा पर लगा है। सवाल है कि जब विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजना जरूरी ही लगा था, तो क्या उस प्रस्ताव को तैयार करते हुए संबंधित सांसदों से राय-मशविरा करना या उनसे लिखित सहमति लेना जरूरी नहीं था!
अब अगर वे पांचों सांसद अपने हस्ताक्षर के फर्जी होने और उनकी सहमति के बगैर उनका नाम दिए जाने की शिकायत कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से इससे जुड़ी विधिक स्थितियों की पड़ताल होनी चाहिए। फिलहाल, इस संबंध में विशेषाधिकार समिति की रपट आने तक के लिए राघव चड्ढा को सदन से निलंबित कर दिया गया है।
हालांकि सदन का सदस्य होने के नाते राघव चड्ढा को यह ध्यान रखना चाहिए था कि अगर कोई मामला विशेषाधिकार समिति में है तो इस बारे में सार्वजनिक रूप से कोई राय जाहिर न करें। मगर खबरों के मुताबिक, उन्होंने मीडिया के सामने अपना बचाव करने की कोशिश की। इसे नियमों का उल्लंघन माना गया।
यों, इस मामले में राघव चड्ढा नियमों का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि सांसद किसी भी समिति के गठन के लिए नाम प्रस्तावित कर सकता है और संबंधित व्यक्ति के हस्ताक्षर या लिखित सहमति की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन जिन पांच सांसदों के नाम प्रस्ताव में दिए गए थे, अगर वे सभी न केवल इस बारे में कोई जानकारी न होने, बल्कि अपना फर्जी हस्ताक्षर किए जाने की शिकायत कर रहे हैं तो इसे कैसे देखा जाएगा? अब इस मामले की जांच के बाद ही यह सामने आएगा कि क्या नियमों का उल्लंघन करके बिना सहमति के सांसदों का नाम भेजा गया था या फिर उनके नाम के फर्जी हस्ताक्षर किए गए।
अगर ये आरोप सही पाए गए तो निश्चित रूप से राघव चड्ढा की सदस्यता तक पर सवाल उठ सकते हैं। सही है कि आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली की सत्ता है और दिल्ली राज्य सेवा विधेयक के कानून बनने के बाद इसके जरिए यहां के शासन के स्वरूप में जो बदलाव आएगा, उससे उसके नेताओं को परेशानी होगी। मगर इसके विरोध के लिए अगर अवांछित तरीके अपनाए जाते हैं, तो यह खुद इस पार्टी के घोषित सिद्धांतों के आलोक में इसके नेता कठघरे में खड़े होंगे।