महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा बदलते वक्त और उभरती चुनौतियों के बावजूद आज भी प्रासंगिक है। इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद लाखों मजदूरों को काम मिला। पलायन में काफी हद तक कमी आई। मनरेगा ने साबित किया कि भारत में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए वह आज भी उम्मीद की किरण है। इस कार्यक्रम से लाखों अकुशल श्रमिकों और महिलाओं को पूरे वर्ष में सौ दिन के रोजगार की गारंटी मिली। इससे बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवार लाभान्वित हुए।
यही वजह है कि इस कार्यक्रम में काम के दिन बढ़ाने की मांग अक्सर उठती रही है। अब संसद की स्थायी समिति ने भी मनरेगा पर भरोसा जताते हुए काम के दिनों की संख्या बढ़ा कर पांच महीने यानी डेढ़ सौ दिन करने का सुझाव दिया है। इसके अलावा उसने दैनिक पारिश्रमिक कम से कम चार सौ रुपए करने की सिफारिश की है। दरअसल, अभी इस कार्यक्रम के तहत मिलने वाली मजदूरी इतनी कम है कि इससे न्यूनतम जरूरतें भी पूरी नहीं हो सकतीं। रोजगार योजना के लिए आबंटित राशि में लंबे समय से ठहराव पर समिति की चिंता इसी संदर्भ में है। कोई दो राय नहीं कि इसकी राशि बढ़ने से इसकी प्रभावशीलता बढ़ेगी।
मनरेगा ने साबित की अपनी सार्थकता
हालांकि मनरेगा में वित्तीय अनियमितता की भी शिकायतें मिलती रही हैं। इसके प्रति श्रमिकों का रुझान घटने और मजदूरी देर से मिलने पर सवाल उठते रहे हैं। ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय की स्थायी समिति ने तीन साल पहले मनरेगा का विश्लेषण करते हुए कई सुझाव दिए थे। तब उस समिति ने भी इस कार्यक्रम को नया रूप देने के लिए काम के गारंटीशुदा दिनों को सौ से बढ़ा का डेढ़ सौ करने की सिफारिश की थी और सभी राज्यों में समान मजदूरी दर करने का सुझाव दिया था।
आतंक की चुनौती से डटकर लड़ रही सेना, कश्मीर में हुए घुसपैठी हमले में सूबेदार हुए शहीद
अब संसद की समिति ने उन सुझावों पर एक तरह से मुहर लगाई है। अगर मनरेगा में नीतिगत सुधारों को लागू करने के लिए स्वतंत्र और पारदर्शी सर्वेक्षण होगा, तो इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। भविष्य में इस कार्यक्रम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलेगा। इसमें दोराय नहीं कि मनरेगा ने अपनी सार्थकता साबित की है।