भारत को लेकर पाकिस्तान का असुरक्षा बोध अक्सर सामने आता रहता है। इसी वजह से वह भारत के खिलाफ नाहक बयानबाजी से लेकर तथ्यहीन प्रचार तक करने से बाज नहीं आता। विडंबना यह है कि जिन खेलों को देशों के बीच संबंधों में सौहार्द लाने और इसके जरिए सुधार की उम्मीद माना जाता रहा है, पाकिस्तान उनमें भी नाहक और अपरिपक्व जिद का प्रदर्शन करने लगा है।

गौरतलब है कि इस साल भारत की मेजबानी में खेले जाने वाले एकदिवसीय क्रिकेट विश्वकप मैचों का कार्यक्रम मंगलवार को जारी किया गया था। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आइसीसी और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआइ की ओर से जारी कार्यक्रम के बाद पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड यानी पीसीबी ने अफगानिस्तान के खिलाफ अपने मैच को चेन्नई से बंगलुरु और आस्ट्रेलिया से अपने मैच को बंगलुरु से चेन्नई में पुनर्निर्धारित करने के लिए कहा था।

माना जाता है कि चेन्नई में निर्धारित मैदान की पिच स्पिनरों के लिए मददगार होती है। पाकिस्तान टीम प्रबंधन को यह डर था कि अगर उस मैदान पर शानदार स्पिन गेंदबाजों से लैस अफगानिस्तान टीम से उसका सामना होता है तो उसे नुकसान हो सकता है।

ऐसा लगता है कि पाकिस्तान की हठधर्मिता एक विचित्र रूप में सामने आ रही है और इसकी वजह से वह एक अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में अपने मुताबिक जगह बदलने जैसी हास्यास्पद मांग करने से नहीं हिचक रहा है। जाहिर है, यह ऐसी मांग थी जिसे केवल बचकाना और नाहक भय का नतीजा कहा जा सकता था।

यह बेवजह नहीं है कि मैचों के कार्यक्रम और स्थलों पर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की ओर से उठाई गई तमाम आपत्तियों को आइसीसी ने खारिज कर दिया। यह एक तरह से पाकिस्तान की दोहरी फजीहत है, जिसमें उसके भीतर का डर भी सामने आया। अपनी टीम की क्षमता में सुधार और उसे किसी भी मैदान पर सामना करके जीतने लायक बनाने के बजाय पिच की वजह से स्थल बदलने की मांग उसकी सीमा को ही दर्शाती है।

लेकिन इसके बाद अब पीसीबी की ओर से एक समस्या यह रख दी गई विश्व कप में हमारा खेलना और अहमदाबाद में या सेमीफाइनल में पहुंचने पर मुंबई में खेलना पाकिस्तान सरकार से मंजूरी मिलने पर निर्भर करता है। सवाल है कि पाकिस्तान टीम प्रबंधन के भीतर चल रहा यह द्वंद्व आखिर किस तरह के आग्रहों का नतीजा है!

विश्वकप जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के आयोजन में मैचों के लिए कार्यक्रम या स्थल को निर्धारित करते हुए किसी खास देश को लेकर रणनीति बनाने जैसी बातें ध्यान में नहीं रखी जाती हैं। सभी देशों को समान भाव से देखा जाता है। हालांकि संभावित सुरक्षा खतरे के मसले पर आयोजन स्थल में बदलाव भी किया जाता है। लेकिन आइसीसी को इस मामले में ऐसी कोई आशंका नहीं दिखी।

अपने साथ होने वाले मैचों में जिन स्थलों पर पाकिस्तान को आपत्ति हो रही थी, वहां अगर वह नहीं होता तो किसी न किसी टीम को होना ही था। लेकिन पाकिस्तान की समस्या यह है कि उसे भारत की मेजबानी में हो रही प्रतियोगिता में हारना पसंद नहीं है, इसलिए वह किसी खास पिच पर खेलने से हिचक रहा है। यह अपनी ही कमजोरी को सार्वजनिक करना है।

दरअसल, पाकिस्तानी टीम के इस द्वंद्व पर भारत के साथ पाकिस्तान के तनावपूर्ण और उतार-चढ़ाव से भरे संबंधों की भी छाया है। लेकिन जरूरत इस बात की है कि पाकिस्तान को कम से कम खेलों की दुनिया को राजनीतिक स्थितियों से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। खेल प्रतियोगिताओं के आयोजन अलग-अलग देशों के नागरिकों के बीच सौहार्द कायम करने का एक जरिया रहे हैं। इसमें राजनीतिक पूर्वाग्रहों को हावी नहीं होने देना चाहिए।