जब भी भारत में कोई आतंकी हमला होता है, तो पाकिस्तान हमेशा उसमें अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है। यहां तक कि मुंबई बम धमाके जैसे जिन बड़े मामलों में उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, उनमें भी वह अपने नागरिकों के शामिल होने से इनकार करता रहा है। वही रुख उसने पहलगाम हमले पर अपना रखा है। हालांकि एक साक्षात्कार में वहां के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कबूल किया है कि पाकिस्तान में दहशतगर्दी को पोसने में पश्चिमी देशों का हाथ रहा है। वही इन संगठनों का वित्तपोषण करते रहे हैं। ये आतंकी संगठन दशकों से पश्चिम के लिए ‘गंदा काम’ कर रहे हैं। पाकिस्तान से यह गलती हुई कि उसने इसे रोका नहीं, जिसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा है।
पहली नजर में यह बयान आसिफ की साफगोई लग सकती है, मगर फिर वही पुराना सवाल कि आखिर पाकिस्तान ने आतंकवाद के लिए अपनी जमीन का इस्तेमाल क्यों होने दिया और लगातार होने दे रहा है। अब जब भारत ने उस पर शिकंजा कसना शुरू किया है, तो अपने यहां पल रहे दहशतगर्दों को पश्चिम की पैदावार बता कर वह पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है। मगर उसी बातचीत में आसिफ ने यह भी कहा कि पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा का वजूद ही नहीं है, फिर उसकी शाखा कहां से पैदा हो सकती है।
आतंकी संगठनों के पाकिस्तान में पनपने के पीछे आसिफ ने पहले की सरकारों को दोषी ठहराया। मगर सवाल है कि उनकी सरकार ने इन संगठनों को नेस्तनाबूद करने की कितनी कोशिश की। वे वहां के रक्षामंत्री हैं और उन्हें इस बात से अनजान नहीं माना जा सकता कि उनकी सेना और खुफिया एजंसी भारत के खिलाफ छद्म युद्ध में इन्हीं आतंकियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती है। क्या रक्षामंत्री के नाते उन्होंने कभी सेना पर ऐसा न करने का दबाव बनाया। क्या वे उन सबूतों को मिटा सकते हैं, जिनमें सीमा पर आतंकी प्रशिक्षण केंद्र चलाने के तथ्य मौजूद हैं।
दुनिया के अनेक देश मानते हैं कि पाकिस्तान दहशतगर्दों की सबसे बड़ी पनाहगाह बन चुका है। वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान में आतंकवाद की दर तेजी से बढ़ी है। क्या आसिफ को इस बात की जानकारी नहीं कि कंधार कांड से जुड़े आतंकी उनकी ही सरजमीन पर रहते हैं और खुलेआम घूमते हैं? उनको पाकिस्तानी सेना की कड़ी सुरक्षा मिली हुई है। केवल यह कह देने से कि लश्कर-ए-तैयबा का पाकिस्तान में वजूद नहीं है, यह बात सच नहीं हो जाती।
यह पहली बार नहीं है, जब पाकिस्तान दहशतगर्दी के मामले में अपने को पाक-साफ साबित करने की कोशिश कर रहा है। मगर उसकी असलियत किसी से छिपी नहीं है। वर्षों से उसकी अर्थव्यवस्था दूसरे देशों की इमदाद से चल रही है। फिलहाल उसने चीन का दामन पकड़ रखा है और उसी के सहारे उसकी दाल-रोटी चल पा रही है। पर वास्तव में वह दुनिया में अलग-थलग पड़ चुका है। वहां इस कदर गुरबत है कि लोग आटे-दाल के लिए लूट-खसोट पर उतरते देखे जाते हैं। मगर ऐसे हालात में भी तुर्रा यह कि अपने यहां जड़ें जमाए आतंकवाद को खत्म कर तरक्की के रास्ते तलाशने के बजाय वह भारत से दो-दो हाथ करने का दम भरता है। इस रवैए के साथ पाकिस्तान और बदहाली की ओर ही बढ़ेगा।