पहलगाम हमले को एक हफ्ते से अधिक समय गुजर चुका। इसे लेकर लोगों का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है। हालांकि आतंकवाद और उसे पोसने वाले पाकिस्तान पर नकेल कसने के लिए सरकार ने कई कड़े कदम उठाए हैं। घाटी में सुरक्षा इंतजाम बढ़ा दिए गए हैं। सुरक्षा बलों को जवाबी कार्रवाई की खुली छूट दे दी गई है। जम्मू-कश्मीर सरकार भी सुरक्षा को लेकर सतर्क है। उसने पचास पर्यटन स्थलों को बंद कर दिया है, और ऐसे स्थलों की पहचान की जा रही है, जहां सैलानियों के लिए खतरा हो सकता है। मगर, फिर भी जन-दबाव बना हुआ है कि पाकिस्तान के खिलाफ कोई सख्त निर्णय करने का वक्त है।

मगर सरकार कोई भी कदम हड़बड़ी या उत्तेजना में नहीं उठाना चाहती है। सुरक्षा एजंसियों, सेना प्रमुखों और रणनीतिकारों के साथ लगातार बैठकों का दौर चल रहा है। सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति की बैठकें हो चुकी हैं। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद को पुनर्गठित कर दिया है। इसलिए पाकिस्तान को आशंका है कि भारत उस पर कभी भी हमला कर सकता है। मगर भारत सरकार इसे लेकर सावधानी बरत रही है, तो उसकी वजहें भी समझी जा सकती हैं।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, उसे कड़ा सबक सिखाया ही जाना चाहिए, मगर इसका तरीका क्या हो, यह जटिल विषय है। यों तो युद्ध किसी भी मसले का हल नहीं हो सकता, पर पाकिस्तान के मामले में इसे लेकर अधिक गंभीरता से विचार करने की जरूरत पड़ती है। असल मुद्दा आतंकवाद को समाप्त करना है। वह युद्ध के बाद समाप्त हो जाएगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता।

फिर, भारत हमेशा से युद्ध का विरोध और शांति का समर्थन करता रहा है, अगर वही पाकिस्तान के खिलाफ इसकी पहल करता है, तो उस पर सवाल उठेंगे। इसलिए सरकार तमाम पहलुओं पर ठंडे दिमाग से विचार कर रही है। एक शांतिप्रिय राष्ट्र से ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद भी की जाती है। मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं कि पहलगाम हमले को लेकर भारत सरकार किसी तरह का ढुलमुल रवैया अख्तियार कर रही है।

पाकिस्तान से निपटने की रणनीति बनाते समय इस हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि वहां सेना और सियासी हुकूमत समांतर सत्ता हैं। वहां की सेना ने सियासी हुकूमत से ऊपर अपनी सत्ता कायम कर रखी है। वही आतंकवाद को पोसती और भारत के खिलाफ एक हथियार के रूप में उसका इस्तेमाल करती है। जबकि पाकिस्तान की माली हालत इस वक्त बहुत बुरी है, आम अवाम दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रही है। मगर पाकिस्तानी सेना का उससे कोई मतलब नहीं है, उसका मकसद केवल अपनी सत्ता कायम रखना है।

छिपी बात नहीं है कि भारत के खिलाफ आतंकवादी हमले करने वाले संगठनों के सरगना वहां सेना के संरक्षण में पनाह पाए हुए हैं। ऐसे में भारत को कोई भी कदम उठाने से पहले इस पहलू पर भी विचार करना पड़ता है कि चोट ऐसी जगह पड़े, जिससे वहां की सेना और खुफिया एजंसी को ज्यादा नुकसान हो। इसी से आतंकवाद पर भी चोट पड़ेगी। पहलगाम हमले के बाद घाटी के लोगों में भी गम और गुस्सा है, दुनिया के बहुत सारे देश पाकिस्तान की निंदा कर चुके हैं। इस तरह भारत के लिए आतंकवाद पर रणनीतिक रूप से चोट करने का अनुकूल वातावरण है।