ताजमहल के रूप में भारत की जो धरोहर दुनिया भर के सैलानियों के लिए आकर्षण का विषय है, वह भी हमारी लापरवाही के चलते छीज रहा है। यों ताज की सुरक्षा और संरक्षण के लिए तमाम इंतजाम करने के दावे किए जाते रहे हैं। लेकिन ताज के स्वरूप पर खतरा मंडरा रहा है तो इसकी वजह उसके संरक्षण में कोताही ही है। हालत यह है कि आसपास के इलाकों में ठोस कचरा जलाए जाने से पैदा धुएं की जद में आकर ताजमहल का रंग पीला पड़ रहा है। सवाल है कि अगर विश्व धरोहर के तौर पर ताज के संरक्षण और उसके मूल स्वरूप को बचाना सरकार की प्राथमिकता में शुमार है, तब ऐसा कैसे संभव हो पा रहा है कि आसपास की गतिविधियों के चलते ताजमहल का रंग बिगड़ रहा है?

इसलिए एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संबंधित महकमों से उचित ही जवाब तलब किया है, उनसे यह बताने को कहा है कि आखिर ताज का रंग बिगड़ते जाने के लिए कौन जिम्मेवार है। इस मसले पर एक पर्यावरण कार्यकर्ता ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाया है कि आगरा में बड़े पैमाने पर नगरपालिका के ठोस कचरे को जलाया जा रहा है और उसके धुएं से ताजमहल का रंग पीला पड़ता जा रहा है। एनजीटी ने नगर प्राधिकरणों को निर्देश दिया है कि वे आगरा और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील ताज के समांतर इलाके के नजदीक खुले में ठोस कचरा न जलाएं।

दरअसल, नगर निगम और अन्य निकाय शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ जगहों पर हर रोज करीब दो हजार टन ठोस कचरा डालते हैं, जिसमें औद्योगिक, जैव-चिकित्सा और अन्य खतरनाक कचरे को अलग करना जरूरी नहीं समझा जाता। इसके बाद जब इसे जलाया जाता है तब इससे निकलने वाले रासायनिक तत्त्वों का ताज के संगमरमर पर क्या असर पड़ता होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। आइआइटी-कानपुर, जॉर्जिया प्रौद्योगिकी संस्थान और विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय के संयुक्त अध्ययन में भी यह तथ्य सामने आया है कि भूरे और काले कार्बन के कारण सत्रहवीं सदी का सफेद संगमरमर का बेजोड़ स्मारक अब पीला पड़ रहा है।

इसके बावजूद सरकारी महकमों का रुख इसी से पता चलता है कि औद्योगिक इकाइयों के धुएं से पैदा समस्या के अलावा ठोस कचरे को जलाने का स्पष्ट असर ताज पर दिख रहा है, उस पर रोक लगाने के लिए किसी पर्यावरण कार्यकर्ता को एनजीटी में शिकायत दर्ज करनी पड़ती है। इससे पहले खुद एक संसदीय समिति अपनी रिपोर्ट में कह चुकी है कि वहां करीब स्थित श्मशान घाट से उत्पन्न होने वाला वायु प्रदूषण ताजमहल को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, इसलिए श्मशान घाट को दूसरी जगह स्थानांतरित करके विद्युत शवदाह गृह स्थापित किया जाए। समिति की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि मुगलकाल की ऐतिहासिक इमारत के आसपास के ताज ट्रैपेजियम जोन में लगाए गए डीजल जेनरेटर भी वायु प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं, जिससे ताज के सौंदर्य पर बुरा असर पड़ रहा है। लेकिन ऐसा लगता है संबंधित महकमों को सक्रिय होने के लिए ये सारे तथ्य पर्याप्त नहीं जान पड़ते! उम्मीद की जानी चाहिए कि एनजीटी के जवाब तलब करने से उनकी तंद्रा टूटेगी।