इसमें कोई दोराय नहीं कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जो कदम उठाया, आतंकवादियों के पाकिस्तान स्थित ठिकानों पर हमला करके उसे तबाह किया, वह अब देश के इतिहास में एक शानदार अध्याय की तरह दर्ज रहेगा। मगर ‘आपरेशन सिंदूर’ के तहत चले अभियान के दौरान इस संबंध में जितनी भी खबरें आईं, उससे जिस तरह की धारणाएं बनीं, जो सवाल उठे, उनका जवाब देश के सामने रखना भी एक स्वाभाविक मांग है। इस क्रम में विपक्ष ने इस बात के लिए दबाव भी बनाया कि संसद में ‘आपरेशन सिंदूर’ पर बहस हो और सरकार उन सवालों का जवाब दे, जिन पर कई स्तर पर धुंधलका छाया हुआ है।

सही है कि भारत ने ‘आपरेशन सिंदूर’ के जरिए दुनिया को यह संदेश दिया कि अगर आतंकियों या उन्हें पालने-पोसने वाले देश ने भारतीय लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। मगर भारत की सोची-समझी और निर्धारित प्रतिक्रिया के दौरान हमलों का स्वरूप और उसके नतीजों को लेकर जिस तरह की खबरें आईं, उससे कई सवाल पैदा हुए। इसके जवाब में सरकार ने जो तस्वीर सामने रखी, वह आतंकियों के खिलाफ की गई प्रतिक्रिया की कामयाबी पर ही केंद्रित रही।

सरकार से उम्मीद है कि वह तथ्यों को सामने रखे

अब विपक्षी पार्टियों के जोर देने के बाद संसद में इस मसले पर बहस के लिए सबके बीच सहमति बनी, तो यह स्वागत योग्य है। इसके साथ ही यह उम्मीद स्वाभाविक है कि महज औपचारिक प्रतिक्रियाओं के बजाय सरकार ‘आपरेशन सिंदूर’ के तहत चलाए गए अभियान और उससे संबंधित तमाम सवालों का तथ्यगत जवाब देगी। यह इसलिए भी जरूरी है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष में किस पक्ष का कितना नुकसान हुआ, इसे लेकर कई तरह के भ्रम परोसे गए।

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रक्षा मंत्री का भी कहना है कि सवाल यह नहीं कि नुकसान कितना हुआ, बल्कि यह है कि परिणाम क्या निकला। सरकार यह कहती रही है कि इस अभियान के शुरू होने के कुछ ही समय बाद पाकिस्तान इतने दबाव में आया कि उसने संघर्ष विराम की फरियाद करनी शुरू कर दी। दूसरी ओर, अमेरिका के राष्ट्रपति कई बार ऐसे दावे कर चुके हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम उन्होंने कराया था। जाहिर है, इस तरह के धुंधलके के बीच एक स्पष्ट तस्वीर की जरूरत महसूस की जा रही थी।

दरअसल, आपरेशन सिंदूर की कामयाबी के बावजूद यह पक्ष अब भी साफ नहीं हो सका है कि पहलगाम में पर्यटकों पर हमला करने वाले आतंकवादी किस तरह घुसपैठ करके वहां पहुंच सके, वहां सुरक्षा व्यवस्था क्यों अनुपस्थित थी। फिर हमले के बाद आतंकी कैसे आराम से वहां से फरार भी हो गए? इसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर कामयाब हमले तो किए गए, लेकिन पहलगाम में हमला करने वाले आतंकियों का क्या हुआ, यह अब तक साफ नहीं है।

एक जरूरी पक्ष यह भी है कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल ने हमले के संदर्भ में सुरक्षा चूक की बात स्वीकार की थी। इन सब पहलओं से जुड़े तथ्य सरकार के पास मौजूद होंगे। अब संसद में बहस के बीच यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार देशहित में सभी तथ्यपूर्ण बातों को संसद में सबके सामने रखेगी, ताकि इस समूचे मसले पर उठने वाले सवाल और उससे उपजने वाले भ्रम पर तस्वीर साफ हो सके।