भारत-पाक संघर्ष विराम के बाद प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। आतंकवाद और बातचीत या व्यापार साथ-साथ नहीं चल सकते। सैन्य संघर्ष फिलहाल स्थगित किया गया है, वह समाप्त नहीं हुआ है। आपरेशन सिंदूर अब भारत की नई नीति है। इससे पहले तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने संयुक्त रूप से बयान जारी किया था कि संघर्ष विराम अस्थायी है, सेना नए अभियान के लिए तैयार है। फिर राष्ट्र के नाम संबोधन के अगले दिन प्रधानमंत्री आदमपुर वायुसेना अड्डे पर सैनिकों से मिलने गए और वहां भी यही संकेत दिया कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति यथावत है।

सेना बार-बार दावा कर रही है कि सैन्य अभियान आतंकवाद के खिलाफ था

इस तरह अचानक किए गए संघर्ष विराम के फैसले को लेकर पिछले दो-तीन दिनों से जो अटकलें लगाई और सवाल उठाए जा रहे थे, उन पर विराम लग जाना चाहिए। सेना बार-बार कहती रही है कि उसका सैन्य अभियान आतंकवाद के खिलाफ था। अब भी प्रधानमंत्री ने वही बात दोहराई है कि आतंकवाद को नेस्तनाबूद करना ही हमारा असल मकसद है। प्रधानमंत्री ने प्रकारांतर से पाकिस्तान और भारत के बीच के मसलों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता के प्रस्ताव पर स्पष्ट कह दिया कि जब भी बात होगी तो पाक अधिकृत कश्मीर और आतंकवाद पर ही होगी।

पहलगाम हमले के बाद आपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान स्थित नौ आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमले किए थे। इसके साथ ही सरकार ने सप्रमाण दुनिया भर को बता दिया था कि उसका मकसद पाकिस्तान पर नहीं, बल्कि वहां चल रहे आतंकी संगठनों पर हमला करना था। मगर पाकिस्तान ने उसके जवाब में भारतीय सीमा के नागरिक ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी थी, जिसका जवाब देना जरूरी हो गया था। ऐसे में स्थिति लगातार संघर्ष के बढ़ते जाने की बन गई थी।

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संघर्ष किस हद तक पहुंच जाता, कहना मुश्किल है। इसलिए सैन्य संघर्ष पर विराम और आतंकवाद के खिलाफ नई रणनीति बनाना जरूरी था। भारत शुरू से कहता रहा है कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। फिर, उसका जोर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और दुनिया की शीर्ष शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने पर है। ऐसे में पाकिस्तान के साथ लंबे समय तक सैन्य संघर्ष में उलझे रहना कोई समझदारी की बात नहीं होती। फिर, जिस तरह के वैश्विक समीकरण बने हैं, उसमें यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित रह पाता, यह कहना भी मुश्किल था।

इसके अलावा, दुश्मन देश के साथ तनाव के वातावरण में अगर कोई राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहा हो तो उसे ठीक नहीं कहा जा सकता। संघर्ष विराम के बाद भी सीमा पर पाकिस्तानी सेना की तरफ से गोलीबारी थमी नहीं है। सेना ने आशंका जाहिर की है कि ऐसा वह आतंकवादियों की घुसपैठ कराने और हमारी चौकियों पर कब्जा करने की मंशा से कर रही होगी। शोपियां में तीन आतंकवादियों के मार गिराने की घटना भी संघर्ष विराम के बाद की है।

इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान पर किसी भी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता। इस सैन्य संघर्ष के समय यह एक बार फिर उजागर हो गया कि पाकिस्तानी सेना का आतंकी संगठनों के साथ गहरे रिश्ते हैं। ऐसे में, अगर भारतीय सेना ने नई रणनीति के लिए कुछ समय का विराम लिया है, तो इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता।