किसी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में मताधिकार का सबसे बड़ा महत्त्व होता है। इस लिहाज से भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, क्योंकि यहां मताधिकार प्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा है। हर पात्र नागरिक का मताधिकार सुरक्षित रहे, इसका जिम्मा चुनाव आयोग पर है। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आयोग की ओर से किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण के तहत तैयार की गई मसविदा मतदाता सूची से राज्य के पैंसठ लाख लोगों का बाहर होना चौंकाने वाला कदम है।

सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में मतदाता कहां चले गए? चुनाव आयोग का दावा है कि इनमें से अधिकतर व्यक्तियों की या तो मौत हो चुकी है या वे राज्य से पलायन कर चुके हैं, यानी किसी दूसरे राज्य में रह रहे हैं। निर्वाचन आयोग के मुताबिक, बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 7.9 करोड़ है, जो नई मसविदा मतदाता सूची में घटकर 7.24 करोड़ रह गई है।

विधानसभा चुनाव में कुछ माह शेष रहने पर ही क्यों शुरू की गई प्रक्रिया

एक अनुमान के मुताबिक, औसतन एक विधानसभा क्षेत्र से पच्चीस से तीस हजार लोगों के नाम सूची में शामिल नहीं हैं। इस पूरी प्रक्रिया पर मुख्यत: दो कारणों से सवाल उठ रहे हैं। पहला, विधानसभा चुनाव में कुछ माह शेष रहने पर ही यह प्रक्रिया शुरू क्यों की गई? दूसरा, चुनाव आयोग की ओर से तय की गई नागरिकता प्रमाणपत्र नियमावली में आधार, मतदाता पहचान-पत्र और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज के रूप में शामिल क्यों नहीं किया गया? इसके जवाब में चुनाव आयोग के पास अपने तर्क हैं, मगर कई सामाजिक संगठन और विपक्षी दल इनसे इत्तिफाक नहीं रखते।

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यह भी सच है कि मसविदा सूची अंतिम नहीं है और जिन लोगों के नाम शामिल नहीं हैं, उन्हें नए सिरे से आवेदन करने का अवसर मिलेगा। मगर, इससे सबसे ज्यादा परेशान वे लोग हैं, जिन्होंने पिछले चुनावों में मतदान किया था और अब नई मसविदा सूची में उनका नाम हटा दिया गया है। सवाल यह भी उठ रहा है कि मसविदा सूची से बाहर हुए लोग अगर मतदान के पात्र नहीं थे तो पहले उनका पंजीकरण कैसे हुआ और किस आधार पर उन्हें मतदाता पहचान-पत्र जारी किया गया? व्यवस्था में खामी पहले थी या अब है, इसका जवाब आना चाहिए।

बांग्लादेशी और रोहिंग्या फर्जी तरीके से बनवा लिए मतदाता पहचान

एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह भी है कि जिन लोगों के पास चुनाव आयोग की नियमावली के अनुरूप अपनी नागरिकता सिद्ध करने का प्रमाणपत्र नहीं है, उन्हें उसे बनवाने में वक्त लग सकता है और अगर निर्धारित समय पर यह सब नहीं हो पाया, तो वे मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। विपक्षी दल यह आरोप भी लगा रहे हैं कि चुनाव आयोग की ओर से शुरू में यह आश्वासन दिया गया था कि मतदाता सूची से हटाए गए प्रत्येक नाम की जानकारी कारण सहित सभी राजनीतिक दलों के साथ साझा की जाएगी, मगर अब ऐसा नहीं किया जा रहा है।

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वहीं, सत्ता पक्ष का कहना है कि बिहार में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या रह रहे हैं और उनमें से ज्यादातर ने फर्जी तरीके से मतदाता पहचान-पत्र बनवाए हैं। ऐसे में उन्हें मतदाता सूची से बाहर करना जरूरी है। बहरहाल, इसमें दोराय नहीं है कि निर्वाचन आयोग की ओर से मतदाता सूचियों का समय-समय पर अद्यतन जरूरी है, ताकि मतदान की शुचिता बनी रहे। मगर, यह भी आवश्यक रूप से सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई पात्र नागरिक बेवजह परेशान न हो और न ही वह मतदान के अधिकार से वंचित हो।