पिछले कई दशक से वैश्विक ताप में बढ़ोतरी चिंता का विषय है। इसकी वजह से समूची दुनिया में गंभीर चुनौतियां पैदा हो गई हैं। मगर विडंबना है कि इस मसले पर ऐसा कुछ भी ठोस नहीं किया जा रहा, जिससे तापमान संतुलन की उम्मीद जगे। उल्टे अब मौसम में उथल-पुथल इस कदर होनी शुरू हो गई है कि जिन महीनों में ठंड की आहट मिलने लगती थी, उनमें तापमान चढ़ा हुआ रहने लगा है, जो आने वाले संकट का संकेत दे रहा है।

1901 के बाद सबसे अधिक गर्म रहा तापमान

मसलन, भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, देश में इस वर्ष अक्टूबर का महीना सन 1901 के बाद सबसे अधिक गर्म रहा और औसत तापमान सामान्य से 1.23 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया। यानी एक सौ चौबीस वर्षों के बाद पहली बार अक्टूबर के महीने में मौसम में गर्मी इतनी थी कि उसे सामान्य नहीं माना जा रहा है। अनुमान जताया जा रहा है कि नवंबर में भी अगले दो सप्ताह तक तापमान सामान्य से दो से पांच डिग्री ऊपर बना रहेगा।

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फिलहाल मौसम के उतार-चढ़ाव ने मौसम विज्ञानियों के सामने भी अध्ययन का नया फलक खोल दिया है। हालांकि बताया जा रहा है कि इस बार पश्चिमी विक्षोभ के अभाव और बंगाल की खाड़ी में सक्रिय चक्रवात सहित कई निम्न दबाव वाले क्षेत्रों के बनने से औसत न्यूनतम तापमान ज्यादा दर्ज किया गया। हाल के दशकों में वैश्विक ताप में बढ़ोतरी के लिए जिन कारकों की पहचान की गई है, उसका हल निकालने को लेकर सक्रियता तो दिखती है, मगर जमीनी हकीकत यह है कि जिन देशों को कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है, वहां इसमें कमी करने को लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिखती।

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सारी जवाबदेही विकासशील देशों पर थोप दी जाती है। हालांकि यह समस्या केवल एक या कुछ देशों तक सीमित नहीं है। समूचा विश्व इससे प्रभावित है और मौसम की इस अनियमितता को सभी को गंभीरता से लेने की जरूरत है। मौसम की अपनी गति होती है और उसमें समय-चक्र के मुताबिक तापमान में उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन अगर वक्त रहते इस संकट से निपटने के उपाय नहीं किए गए तो इसकी मार को झेलना मुश्किल होता जाएगा।