एनएसजी में शामिल होने की भारत की सारी कोशिशें पिछले दिनों नाकाम साबित हुर्इं, जब दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में हुई एसएसजी की बैठक में सदस्यता का उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। अलबत्ता एनएसजी के अड़तालीस में से अड़तीस सदस्य भारत के समर्थन में थे। लेकिन एक दूसरी बहुपक्षीय निर्यात व्यवस्था का दरवाजा भारत के लिए खुल गया है। भारत सोमवार को एमटीसीआर यानी मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था का पूर्ण सदस्य बन गया। इस तरह इस समूह के सदस्यों की संख्या पैंतीस तक पहुंच गई है। इसे स्वाभाविक ही भारत की एक अहम कूटनीतिक उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। एमटीसीआर में हिस्सेदारी का सामरिक महत्त्व तो है ही, वैश्विक शांति के मामलों में भागीदारी के लिहाज से भी है। एमटीसीआर का गठन मिसाइल तकनीक के प्रसार पर निगरानी और नियंत्रण के लिए किया गया था।
जिनके पास जनसंहार के हथियार हैं या ऐसे हथियार बनाने का जिनका इरादा हो उन्हें मिसाइल व चालक-रहित विमान आदि की तकनीक देने पर रोक लगाना एमटीसीआर का घोषित उद््देश्य रहा है। इसकी सदस्यता का मतलब है, जवाबदेही की एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में शामिल होना और भारत की साख बढ़ना। इसी के साथ एमटीसीआर की सदस्यता का एक लाभ यह भी बताया जा रहा है कि भारत को अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक पाने में आसानी होगी। यूपीए सरकार के दौरान 2005 में अमेरिका के साथ हुए एटमी करार के बाद से ही भारत एनएसजी, एमटीसीआर, आस्ट्रेलिया समूह और वेसेनार अरेंजमेंट जैसी निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं में शामिल होने का प्रयास करता रहा है। ये समूह परमाणु, जैविक तथा रासायनिक हथियारों व उनसे जुड़ी प्रौद्योगिकी का नियमन करते हैं। यह गौरतलब है कि चीन एमटीसीआर का सदस्य नहीं है, जिसने एनएसजी में भारत के प्रवेश के आवेदन का खुल कर विरोध किया। पर इसी के साथ यह भी ध्यान में रहना चाहिए कि एमटीसीआर कोई वैधानिक संधि नहीं है, जो अपने सदस्य देशों पर कोई बाधता लागू कर सके।
एनएसजी के दिशा-निर्देश मिसाइल तकनीक के निर्यात की बाबत सदस्य देशों व गैर-सदस्य देशों के बीच कोई फर्क नहीं करते। इसके अलावा, ये दिशा-निर्देश ऐसी तकनीक हासिल करने के लिए सदस्य देश को विशेष रूप से हकदार नहीं बनाते, न ही सदस्य देशों पर यह जिम्मेदारी डालते हैं कि वे अन्य सदस्य देशोंं को ऐसी चीजें बेचें ही। इसलिए जहां तक मिसाइल तकनीक हासिल करने या बाहरी मदद से उसका विकास करने का सवाल है, एमटीसीआर की सदस्यता मात्र से भारत की स्थिति में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।
अलबत्ता जब भारत एमटीसीआर के तहत आने वाली सामग्री व तकनीक की बाबत निर्यात की अपनी उपयुक्त या अपेक्षित नीति घोषित करेगा, तो वह नीति इस तर्क का आधार बनेगी कि भारत को ऐसी सामग्री व तकनीक बेचने में उनके प्रसार का खतरा नहीं है। एमसीटीआर में भारत के प्रवेश को एनएसजी से जुड़ी उसकी नाकामी के बरक्स किसी हद तक भरपाई के तौर पर देखा जा रहा है। पर एमसीटीआर की सदस्यता और पहले भी मिल सकती थी, इटली के एतराज के चलते वह रुकी हुई थी। वर्ष 2015 तक एमसीटीआर का सदस्य बनने के भारत के प्रयासों पर इटली ने अड़ंगा लगा रखा था। इसलिए कि हत्या के आरोपी उसके दो मरीनों में से एक भारत में हिरासत में था। पिछले महीने वह वापस लौटा, तब जाकर इटली ने हामी भरी, और फिर भारत की सदस्यता को हरी झंडी मिल गई, उसके आवेदन पर सदस्य देशों में से किसी ने भी विरोध नहीं जताया।