पूर्वोत्तर में इस बार भी बारिश ने तबाही मचा दी है। लाखों लोगों का जीवन संकट में है। असम सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। यह केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, मानवीय संकट भी है। वर्तमान स्थिति का सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन तो है ही, कमजोर बुनियादी ढांचा भी है। पूर्वोत्तर के कई राज्य हर बार भारी बारिश का सामना करते हैं। इस दौरान नदियां उफन पड़ती हैं। जर्जर तटबंध पानी के वेग को संभाल नहीं पाते। नतीजा यह कि कई जिले जलमग्न हो जाते हैं, जिससे हजारों लोग बेघर हो जाते हैं। फसलें बर्बाद हो जाती हैं।

दरअसल, जंगलों की कटाई, अवैध खनन और अनियोजित शहरीकरण से यह समस्या बढ़ी है। पूर्वोत्तर में आपदा प्रबंधन आज तक मजबूत नहीं बन पाया है, तो इसकी क्या वजह है? मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल सहित कई राज्य इस बार भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। कई लोगों की मौत हो चुकी है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रपट के मुताबिक 764 गांव जलमग्न हो गए हैं। पूरे पूर्वोत्तर में बरसात के दिनों में यही तस्वीर दिखती है। सवाल है कि बाढ़ से बचाव के लिए राज्य सरकारें पहले से तैयारी क्यों नहीं करतीं।

मूसलाधार बारिश के दौरान जल प्रवाह को संभालना मुश्किल

जलवायु विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि अगर जलवायु अनुकूल रणनीति और योजनाएं नहीं बनाई गईं, तो भविष्य में बारिश बड़े पैमाने पर तबाही ला सकती है। मौसम वैज्ञानिक पहले से ही बताते रहे हैं कि पूर्वोत्तर क्षेत्र की संरचना नाजुक है। ऐसे में, जल निकासी का व्यापक प्रबंधन न होने से मूसलाधार बारिश के दौरान जल प्रवाह को संभालना मुश्किल होता है। वहीं उफनती नदियां तबाही मचा देती हैं।

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भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विभाग की रपट बताती है कि वर्ष 2000 से 2020 के बीच मेघालय, अरुणाचल और असम में 33 फीसद बारिश बढ़ी है। ऐसे में आपदा प्रबंधन से जुड़े योजनाकारों और मौसम विज्ञानियों को बारिश में आई तीव्रता और मौसम के बदलते मिजाज को समझना होगा। प्राकृतिक आपदा के कारण नागरिक बेघर न हों, इसके लिए जरूरी है कि स्थानीय निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाए। हर वर्ष तबाही की बारिश से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की ठोस योजनाएं बनाना वक्त का तकाजा है।