हाइड्रोजन बम का परीक्षण करने के उत्तर कोरिया के दावे ने स्वाभाविक ही दुनिया के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। हालांकि अमेरिका ने इस दावे पर शक जताया है। कई और देशों के विशेषज्ञों का भी अनुमान है कि उत्तर कोरिया ने जिस परीक्षण की बात कही है, हो सकता है वह हाइड्रोजन बम न रहा हो। उत्तर कोरिया के दावे को जांचने में कई दिन लग सकते हैं। अगर यह परीक्षण हाइड्रोजन बम का न रहा हो, तब भी जो हुआ वह सारी दुनिया के लिए गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि वैसी सूरत में यह परमाणु परीक्षण तो रहा ही होगा। हाइड्रोजन बम, परमाणु बम से सैकड़ों गुना शक्तिशाली यानी भयावह होता है। पर एटमी हथियार भी कितना त्रासद हो सकता है, यह नागासाकी और हिरोशिमा की तबाही के रूप में दुनिया देख चुकी है। तब से एटमी हथियारों की तकनीक में और विकास हुआ है, यानी एटमी हथियारों से लैस देशों की संख्या बढ़ी है, और इसके ज्यादा संहारक बनाए जा सकने की क्षमता भी। उत्तर कोरिया पिछले एक दशक में पहले ही तीन बार परमाणु परीक्षण कर चुका था। सबसे पहले 2006 में, फिर 2009 में और फिर 2013 में। यह उसका चौथा परीक्षण है। पिछले सभी परीक्षणों के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए। लेकिन इसका अपेक्षित नतीजा नहीं दिखा, यानी उत्तर कोरिया अपनी फितरत से बाज नहीं आया। उसने एक बार फिर पूरे विश्व को और खासकर अपने पड़ोसी देशों को सांसत में डाल दिया है। इस बार हो सकता है कि संयुक्त राष्ट्र उस पर और भी कड़े प्रतिबंधों की घोषणा करे। इस तरह के पहले के कदम प्रभावी साबित नहीं हो पाए, तो उसका एक खास कारण यह भी था कि उत्तर कोरिया को चीन से गुपचुप मदद मिलती रही।

सारी दुनिया से अलग-थलग पड़े उत्तर कोरिया का साथ केवल चीन और पाकिस्तान ने दिया। पर 2013 में हुए परमाणु परीक्षण के बाद से चीन भी नाराज रहने लगा। फिर भी उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण करने का दावा किया है तो यह उसके दुस्साहस का ही परिचायक है। उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन ने चार साल पहले, अपने पिता किम जोंग-इल की मृत्यु के बाद, सत्ता की कमान संभाली थी। तब किम जोंग-उन ने एलान किया था कि वे एटमी परीक्षण नहीं करेंगे। लेकिन तब से वे दो बार दुनिया को डरा चुके हैं। जिस देश में तानाशाही हो, उसके पास एटमी हथियार का होना ज्यादा अंदेशा पैदा करता है। फिर, किम जोंग-उन तो अपने वचन के पक्के भी नहीं रहे। एक और बड़ा खतरा यह है कि ऐसे संहारक हथियार कहीं किसी दिन किसी आतंकवादी संगठन या गुट के हाथ न लग जाएं। इसलिए यह कोशिश जरूर होनी चाहिए कि उत्तर कोरिया को बातचीत के लिए राजी किया जाए, और बेहतर होगा कि इसकी जिम्मेदारी चीन संभाले। चीन को अहसास हो चुका है कि उत्तर कोरिया विश्वसनीय नहीं है, इसलिए जिस रास्ते पर किम जोंग-उन चलते दिख रहे हैं वह चीन के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि अभी जो परमाणु अप्रसार की नीति चल रही है वह प्रकारांतर से परमाणु हथियारों और तकनीक पर कुछ देशों के एकाधिकार की ही नीति साबित हुई है। इसकी जगह पूर्ण रूप से परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को अपनाया जाए और जल्दी से जल्दी उस मंजिल को हासिल करने की कोशिश हो।