बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विधानसभा में दिए गए अपने एक अमर्यादित बयान के लिए माफी मांग ली है, लेकिन उनके मुंह से जो बात निकली, वह किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को परेशान करने वाली है। यह इसलिए ज्यादा गंभीर है कि वे किसी अनौपचारिक बैठक में अपनी बात नहीं कह रहे थे, बल्कि विधानसभा में सदन को संबोधित कर रहे थे।

हालांकि अगर कोई व्यक्ति संवेदनशील और सचेत है, तो वह किसी भी जगह अपनी बोली को बेलगाम नहीं होने देगा, बल्कि इसे अपने व्यक्तित्व की सहज अभिव्यक्ति में समाहित करेगा। मगर नीतीश कुमार ने इसका ध्यान रखना तब भी जरूरी नहीं समझा, जब वे बाकायदा मुख्यमंत्री के रूप में सदन में बोल रहे थे।

गौरतलब है कि मंगलवार को उन्होंने जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए महिलाओं के बीच शिक्षा के महत्त्व पर जोर देते हुए विधानसभा में एक विवरण रखा कि कैसे एक शिक्षित महिला प्रजनन दर कम करने और जनसंख्या नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह एक सकारात्मक पक्ष है, जिसकी अपनी अहमियत है। मगर इसके महत्त्व को दर्ज करते हुए उन्होंने जिस भाषा का प्रयोग किया, वह पूरी तरह अवांछित और अनपेक्षित था। इसे एक तरह से मर्यादा को ताक पर रखना कहा जा सकता है।

यह बेवजह नहीं है कि सदन में उपस्थित सदस्यों सहित इस बयान को सुनने वाले सभी व्यक्ति को उनकी यह बात बेहद अमर्यादित और अपमानित करने वाली लगी और इसके विरुद्ध आक्रोश उभरा। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की। विपक्षी दलों की ओर से स्वाभाविक ही नीतीश कुमार के बयान को लेकर तीखा विरोध किया गया और माफी की मांग की गई।

हालांकि मामले के तूल पकड़ने के बाद नीतीश कुमार ने जिस तरह अपने बयान के लिए माफी मांगी, उससे समझा जा सकता है कि उन्हें अपनी गलती का अहसास है, लेकिन इससे यही जाहिर हुआ है कि किसी जरूरी बात को कहने के लिए अगर भाषा और शब्दों का चुनाव उचित नहीं है, तो वह बात न सिर्फ अपना अर्थ खो दे सकती है, बल्कि अपने संदर्भ के विपरीत नतीजे भी दे सकती है।

नीतीश कुमार के बयान को इसी आलोक में देखा जा सकता है। खासतौर पर इसलिए भी कि विधानसभा ऐसी जगह होती है, जहां एक-एक शब्द बोलते हुए कानून से लेकर समाज तक के हर पहलू का ध्यान रखना पड़ता है। ऐसे अनेक मौके आते हैं जब विधानसभा या किसी भी सदन में जब कोई जनप्रतिनिधि बेलगाम या अवांछित भाषा का प्रयोग करता है तो उस पर आपत्ति दर्ज की जाती है, उसे सदन की कार्रवाई से हटा भी दिया जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि शिक्षा के प्रसार के साथ महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ी है, कई स्तरों पर उनका सशक्तीकरण हुआ है। समाज की गतिविधियों में उनकी भूमिका का विस्तार हुआ है और परिवार के महत्त्वपूर्ण फैसलों में भी उनका दखल बढ़ा है। महिलाओं की काबिलियत और उपलब्धियों को दर्ज किया जाना चाहिए।

मगर ऐसा करते हुए अगर अवांछित शब्दों का प्रयोग किया जाता है तो यह एक तरह से महिलाओं को अपमानित करने के तौर पर ही देखा जाएगा। बिहार में नीतीश कुमार को शिक्षा और नौकरियों के क्षेत्र में महिलाओं के लिए विशेष अवसर सृजित करने और भागीदारी का अनुपात बढ़ाने के लिए भी जाना जाता है।

आमतौर पर उन्हें एक सौम्य, संतुलित और संवेदनशील व्यक्ति के रूप में ही देखा जाता है और उनसे उनके प्रचारित व्यक्तित्व के अनुरूप ही विचार और व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। यह हैरानी की बात है कि महिलाओं के बीच शिक्षा के महत्त्व को दर्ज करते हुए उन्होंने बोली में सलीके का ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा।