सड़क के किनारे या किसी पार्क में गड्ढे, खुले नाले या मैनहोल में गिर जाने से बच्चों की मौत की घटनाएं अक्सर सामने आती रही हैं। खासकर बरसात में जलजमाव की वजह से सड़क किनारे किसी गड्ढे या नाले का कई बार पता नहीं चलता और राह चलते लोग उसमें गिर जाते हैं। गौरतलब है कि पांच दिन पहले उत्तर-पश्चिम दिल्ली के अलीपुर इलाके में एक खुले नाले में गिरने से पांच वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। वहां निर्माण कार्य कराने वाले ठेकेदार ने कई जगह न केवल नाले को खुला छोड़ दिया था, बल्कि वहां आसपास न तो कोई घेरा लगाया गया था और न कोई चेतावनी के संकेत लगाए गए थे। जाहिर है, यह ठेकेदार से लेकर संबंधित सरकारी महकमे और उसके अधिकारियों की स्पष्ट लापरवाही है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा- यह साफ लापरवाही है
अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने ऐसे कुछ मामलों को आधार बना कर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव, पुलिस आयुक्त, दिल्ली विकास प्राधिकरण और नगर निगम आयुक्त को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में विस्तृत रपट मांगी है। आयोग ने कहा है कि ऐसी घटनाएं नगर निकाय के अधिकारियों की स्पष्ट लापरवाही है और यह पीड़ितों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। यह समझना मुश्किल है कि नाले का निर्माण कराने वाले ठेकेदार और अन्य लोगों को इतनी साधारण बात समझ में क्यों नहीं आती कि खुला नाला कभी भी किसी की मौत की वजह बन सकता है।
दिल्ली में पिछले कुछ दिनों में खुले नाले या मैनहोल में गिर कर लोगों की मौत हो जाने की पांच घटनाएं हो चुकी हैं। विडंबना यह है कि सरकार या संबंधित महकमों को लंबे समय से कायम इस गंभीर समस्या पर गौर करने की जरूरत नहीं महसूस होती। जब भी खुले नाले, गड्ढे या मैनहोल में गिर जाने से किसी की जान चली जाती है, तब सरकार की ओर से औपचारिकता के लिए कुछ कदम उठाने की घोषणा की जाती है, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वैसी ही कोई घटना हो जाती है।
किसी भी जगह नाले के निर्माण या मैनहोल की साफ-सफाई के दौरान उसे खतरनाक तरीके से खुला छोड़ देने की वजह से किसी की मौत की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।