एक बार फिर कोरोना विषाणु के पांव पसारने की आशंका गहराने लगी है। पिछले कुछ दिनों में कोरोना के मामलों में एकदम से उछाल दर्ज हुआ। एक दिन में एक सौ चालीस से अधिक मामले पाए गए। फिर कोरोना के नए बहुरूप जेएन.1 से संक्रमित एक व्यक्ति की केरल में पहचान हो गई। उसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय सतर्क हो गया है।

मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिख कर इससे सावधान रहने को कहा है। तमिलनाडु और केरल सरकार ने लोगों को कोरोनोचित एहतियाती उपाय बरतने का निर्देश जारी कर दिया है। दरअसल, कोरोना की दो बड़ी लहरों ने देश में जितने बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान पहुंचाया, उसके अनुभवों से अब सरकार किसी भी तरह का जोखिम लेने को तैयार नहीं है।

यह अच्छी बात है कि शुरुआती मामला सामने आने के तुरंत बाद सरकारें सतर्क हो गई हैं और लोगों को भी जागरूक रहने को प्रेरित कर रही हैं। कोरोना के शुरुआती मामले केरल से ही फैले थे, जो देश भर में तबाही का कारण बने। हालांकि अभी उसके नए बहुरूप के प्रभाव इतने खतरनाक नहीं हैं कि उसे लेकर बहुत घबराने की जरूरत है, मगर मामूली लापरवाही भी महामारी का रूप ले सकती है।

बड़ी मुश्किल से कोरोना के फैलाव पर काबू पाया जा सका था। देश भर में टीकाकरण और सख्त नियमों के जरिए लोगों को सुरक्षित किया जा सका। मगर चिकित्सा विज्ञानियों का कहना था कि कोरोना विषाणु सदा के लिए समाप्त नहीं हो सकता। यह रूप बदल-बदल कर हमारे बीच में ही उपस्थित रहेगा और हमें अब इसके साथ ही जीने की आदत डालनी होगी। यानी महामारी की छाया बनी हुई है।

दरअसल, कोई भी विषाणु पूरी तरह समाप्त नहीं होता, वातावरण, मौसम आदि के मुताबिक अपना रूप बदल लिया करता है। उससे पार पाने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित करनी पड़ती है। पहले भी प्रतिरोधक टीकों के जरिए ही अनेक महामारी फैलाने वाले विषाणुओं पर काबू पाने में कामयाबी पाई जा सकी है। कोरोना के टीकों का भी निस्संदेह प्रभाव देखा गया।

मगर इन टीकों से शरीर में पैदा होने वाली प्रतिरोधक क्षमता स्थायी नहीं बताई जाती है। फिर, इनका बार-बार उपयोग भी सुरक्षित नहीं माना जाता। ऐसे में लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे खुद नाक-मुंह ढंकने, हाथ धोने जैसे एहतियाती उपाय अपना कर और अपनी दिनचर्या, खानपान की आदतों आदि में बदलाव करके सुरक्षित रहने का प्रयास करें।

मगर भारत जैसे देश में, जहां बहुत सारे इलाकों में भीड़भाड़ अधिक रहती है, लोगों में साफ-सफाई को लेकर जागरूकता कम है, खांसी-जुकाम जैसी शिकायतों में प्राय: अनदेखी और देसी उपचार पर अधिक भरोसा देखा जाता है, वहां किसी भी तरह की लापरवाही कोरोना जैसे विषाणु को पांव पसारने का मौका देती है। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों की चिंता वाजिब है।

हालांकि अब भी बहुत सारी राज्य सरकारें इसे लेकर गंभीर नजर नहीं आतीं। हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं का आलम यह है कि जांच आदि की माकूल व्यवस्था न होने से बहुत सारे रोगों की समय पर पहचान नहीं हो पाती। बहुत सारे लोगों ने मान लिया है कि कोरोना का संकट अब सदा के लिए टल गया है। इसलिए इससे संबंधी जांचें कराने की जरूरत नहीं समझी जाती। ऐसे में सरकारों को खुद भी सतर्क रहना और लोगों में इसके प्रति निरंतर जागरूकता पैदा करते रहना आवश्यक है।