जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने अपना खौफ कायम रखने के लिए किस तरह के हालात पैदा किए हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। मगर पिछले कुछ समय से उनके हमलों में जो नई प्रवृत्ति देखने में आई है, वह है सामुदायिक स्तर पर कुछ खास पहचान वालों को चुन कर मार डालना और उसके जरिए अलग-अलग समुदायों के बीच आपस में संदेह और दूरी बनाने का माहौल पैदा करना।
इस तरह के टकराव पैदा करके शायद वे स्थानीय स्तर पर एक तरह से आपसी अविश्वास और उसके बाद अराजकता की स्थिति बनाना चाहते हैं, ताकि उन्हें अपनी असली मंशा को अंजाम देने के रास्ते आसान हो सकें। इसी मकसद से जम्मू-कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने सोमवार की रात को फिर एक मजदूर की गोली मार कर हत्या कर दी।
यह इस तरह का कोई पहला मामला नहीं है। बीते एक-दो सालों से जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादियों ने लक्षित हमले करके या तो किसी कश्मीरी पंडित को मार डाला या फिर किसी प्रवासी मजदूर को। सवाल है कि सुरक्षा व्यवस्था के मोर्चे पर हर स्तर पर मजबूत होने का दावा करने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में लक्षित हिंसा की घटनाएं थम क्यों नहीं रहीं!
गौरतलब है कि आतंकियों के इस हमले में जान गंवाने वाला मजदूर जिस सर्कस में काम करता था, उसे अलग से सुरक्षा उपलब्ध कराई गई थी। हालांकि सर्कस से जुड़े लोगों के पास अपनी सुरक्षा भी थी। इसके बावजूद आतंकियों ने लक्ष्य करके बाजार से खरीदारी करते उस मजदूर को मार डाला।
ऐसा लगता है कि इस तरह लक्षित हमलों के जरिए आतंकियों का मकसद अपनी गतिविधियों की ओर सबका ध्यान खींचना और सामुदायिक पहचान के आधार पर खौफ पैदा करना है। यों तो आतंकवाद में विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति या समूह से मानवीयता या सिद्धांत की उम्मीद करना ही अपने आप में बेमानी है, लेकिन खुद आतंकवादी संगठन दुनिया के सामने खुद को सही ठहराने के लिए जो बातें परोसते और सरकारी तौर-तरीकों के गलत होने का आरोप लगाते हैं, उन कसौटियों पर वे खुद ही बहुत निचले स्तर पर जाकर भी अमानवीय हरकतें करने से नहीं हिचकते। आखिर किसी सर्कस में काम करने वाले मजदूर ने किसका क्या बिगाड़ा था?
सच यह है कि आतंकवादी संगठन जिनके इशारों पर अपनी गतिविधियां चलाते हैं, उनका अकेला उद्देश्य भारत में अस्थिरता पैदा करना रहा है। लक्षित हमले करके अब वे लोगों के बीच अपनी मौजूदगी का खौफ कायम रखना चाहते हैं। यह जगजाहिर तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले और हत्याएं करने वाले संगठनों के तार सीमा पार से जुड़े हुए हैं।
भारत की ओर से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार यह सवाल उठाए जाने और इस ओर दुनिया के अहम देशों का ध्यान जाने के बावजूद पाकिस्तान को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। जबकि अब यह सिद्ध भी हो चुका है कि पाकिस्तान स्थित ठिकानों से आतंकवादी गतिविधियां संचालित करने वाले संगठन भारत में सुरक्षा बलों से लेकर आम लोगों के खिलाफ आतंकी वारदात को अंजाम देते रहते हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों की ओर से आतंकियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियानों में कमी नहीं की जाती। लेकिन आए दिन आतंकवादी जिस तरह के हमले और कुछ खास तबकों की पहचान को लक्षित करके हत्याएं कर रहे हैं, उसे काबू में करने के लिए सुरक्षा बलों को शायद किसी नई रणनीति पर काम करना पडेगा।