यह अपने आप में विडंबना ही है कि भारत के भीतर ही दो राज्यों के बीच सीमा का मसला करीब पांच दशकों तक उलझा रहा और उसे लेकर दोनों ओर से दावे किए जाते रहे। लेकिन इस मामले में इतने लंबे वक्त के बाद अब जाकर हल का जो रास्ता निकला है, उससे उम्मीद बंधी है कि अरुणाचल प्रदेश और असम इस मुद्दे से आगे निकल कर अब अपने क्षेत्राधिकार में अन्य समस्याओं के हल पर ध्यान देंगे।

दरअसल, गुरुवार को केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी में असम और अरुणाचल प्रदेश की सरकारों ने अपने बीच पुराने सीमा विवाद को खत्म करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही यह माना जा रहा है कि पूर्वोत्तर के इन दोनों राज्यों की सीमा पर स्थित एक सौ तेईस गांवों से जुड़ी समस्या का भी हल हो गया है।

असम और अरुणाचल प्रदेश लगभग आठ सौ चार किलोमीटर लंबी सीमा साझा करते हैं। लेकिन 1972 में जब अरुणाचल प्रदेश को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया था, उसके बाद से ही दोनों राज्यों के बीच यह विवाद चल रहा था। अरुणाचल का दावा था कि मैदानी हिस्सों में कई वन क्षेत्र पारंपरिक रूप से आदिवासी प्रमुखों और समुदायों के होते थे, लेकिन एकतरफा फैसले के तहत उस जमीन को असम को दे दिया गया।

दरअसल, इस इलाके में अलग राज्यों के गठन के वक्त ही सीमा के सही निर्धारण को लेकर स्पष्टता नहीं बन पाई थी और यही इस पूरे विवाद की जड़ रही। इसी वजह से समय-समय पर पिछले पचास साल से दोनों राज्यों के बीच आपस में खींचतान चलती रहती थी।

यही नहीं, इसी विवाद की वजह से असम और इलाके के चार राज्यों- मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के बीच अक्सर हिंसा की घटनाएं भी होती रही हैं। इक्का-दुक्का उदाहरणों को छोड़ दिया जाए तो देश भर में अमूमन सभी राज्यों की सीमाओं को लेकर आमतौर पर कोई बड़ी उठापटक या खींचतान नहीं रही है। नए राज्यों के गठन या किसी राज्य के विभाजन को अंतिम रूप दिए जाने के पहले ही अगर सीमा-क्षेत्र का स्पष्ट निर्धारण कर लिया जाए तो शायद इस उलझन से बचा जा सकता है।

यह समझना मुश्किल है कि असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच का विवाद इतने लंबे वक्त तक क्यों खिंचता रहा। अब इस संबंध में एक रास्ता निकल सका है तो जाहिर है कि इस मसले का समाधान पहले भी निकल आता। मगर ऐसा लगता है कि अब तक इसके लिए ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ ठोस पहल नहीं हो सकी थी। हालांकि पिछले साल जुलाई में असम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने ‘नामसाई घोषणापत्र’ के जरिए अपने बीच के सीमा विवाद को खत्म करने का संकल्प लिया था।

उसमें विवादित गांवों को पहले के एक सौ तेईस के बजाय छियासी तक सीमित करने का फैसला लिया गया था। अच्छी बात है कि टकराव और हिंसा तक के हालात से गुजरने के बाद अब जाकर इस पुराने लंबित विवाद को एक तरह से ‘सौहार्दपूर्ण’ तरीके से सुलझाया गया है।

यह एक अहम उपलब्धि है। खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में उथल-पुथल और अक्सर हिंसक टकराव के अतीत को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस समझौते से देश के संघीय ढांचे को मजबूत करने और राज्यों के बीच आपसी संबंधों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस विवाद का खत्म होना न केवल असम और अरुणाचल प्रदेश में, बल्कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी सर्वांगीण विकास और शांति का रास्ता साफ करेगा।