लंबी प्रतीक्षा के बाद बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जिस विमानन नीति पर मुहर लगाई उसके पीछे दो खास मकसद साफ दिखते हैं। एक, घरेलू विमान यात्रा का दायरा बढ़ाना। दूसरा, उसे सस्ता और सुगम बनाना। देश में अभी लगभग सालाना आठ करोड़ हवाई टिकट बिकते हैं। नई नीति का लक्ष्य इसे 2022 तक तीस करोड़ तक ले जाने का है। इसमें दो राय नहीं कि नई विमानन नीति से देश में हवाई सफर बढ़ेगा, पर यह कहना अभी अति उत्साह होगा कि इस कारोबार की वैश्विक सूची में भारत छह साल में ही नौवें से तीसरे स्थान पर आ जाएगा। क्षेत्रीय हवाई सफर को आकर्षक बनाने के मकसद से सरकार ने आधे घंटे के किराए के लिए बारह सौ पचास रुपए और एक घंटे के लिए ढाई हजार रुपए की सीमा तय की है। पर यह प्रावधान दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों के बीच हवाई सफर की सूरत में ही लागू होगा।

देश में पच्चीस शहरों के बीच फिलहाल अठारह ऐसे नियमित मार्ग हैं जहां हवाई सफर का समय एक घंटे से कम है। एक घंटे तक के सस्ते किराए का मकसद देश में क्षेत्रीय हवाई संपर्क को बढ़ाना और इसका लाभ उठाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करना है। विमानन कारोबार में तेजी लाने के लिए नई नीति में कुछ और भी तजवीज की गई है। जैसे, 5/20 का नियम खत्म कर दिया है। इस नियम के तहत उन्हीं विमानन कंपनियों को विदेशी उड़ानों की इजाजत दी जाती रही है जिनके पास पांच साल का अनुभव और कम से कम बीस विमान हों। अब विदेशी उड़ान की शर्तें आसान कर दी गई हैं। अब कोई भी घरेलू एअरलाइन विदेश के लिए उड़ान भर सकती है, शर्त यह होगी कि उसे अपने बीस विमानों को या अपनी कुल क्षमता के बीस फीसद को घरेलू उड़ानों के लिए लगाना होगा। घरेलू टिकट रद््द कराने पर पंद्रह दिनों में और अंतरराष्ट्रीय टिकट रद््द कराने पर तीस दिनों में ग्राहकों को पैसा वापस करना होगा। तय सामान यानी पंद्रह किलो से ज्यादा वजन पर घरेलू उड़ान में सौ रुपए प्रति किलो ही शुल्क लगेगा।

नई नीति को लेकर स्वाभाविक ही बाजार ने उत्साह दिखाया है; नीति घोषित होते ही कई एअरलाइनों के शेयरों की कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज हुई। पर बाजार के जोश दिखाने के बावजूद नई विमानन नीति की कुछ चुनौतियां भी हैं। घरेलू क्षेत्रीय उड़ानों को किफायती बनाने की कुछ कीमत सरकारी खजाने को चुकानी पड़ सकती है, नुकसान होने की सूरत में सरकार ने अस्सी फीसद तक की भरपाई का भरोसा दिलाया है। यही नहीं, राज्य सरकारों को छोटे शहर के हवाई अड््डे पर विमान के र्इंधन पर लगने वाला वैट एक फीसद या उससे कम करना होगा। फिलहाल दो से पच्चीस फीसद तक वैट लिया जाता है।

राज्यों को हवाई अड््डा शुल्क, उप-कर छोड़ना पड़ सकता है या उनमें खासी कटौती झेलनी पड़ सकती है। टिकट की कीमत पर सेवा-कर भी घटाना पड़ सकता है। क्या राज्य इसके लिए तैयार होंगे? क्या कंपनियां किराए की अधिकतम सीमा का नियम आसानी से स्वीकार कर लेंगी? नई विमानन नीति की घोषणा के बाद एक बड़ी चुनौती ढांचागत दुरुस्ती की होगी। आंचलिक हवाई संपर्क योजना को व्यावहारिक रूप देने के लिए बहुत-से अड््डों का पुनर्निर्माण और आधुनिकीकरण करना होगा; कई नए हवाई अड््डे बनाने होंगे। जाहिर है, नई विमानन नीति की सफलता का दारोमदार बहुत कुछ राज्यों के सहयोग पर भी निर्भर करता है।