भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के बाद अब नेपाल में युवाओं का आक्रोश सड़कों पर दिखाई दे रहा है। आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा में कई लोगों की जान चली गई है। सरकारी संपत्तियों को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है। सरकार की ओर से सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने से सुलगी विरोध की इस चिंगारी से संसद तथा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवास भी अछूते नहीं रहे। प्रदर्शनकारियों की भीड़ को नियंत्रित करना सुरक्षा बलों के लिए इस समय बड़ी चुनौती है। हालात इस कदर बेकाबू हो गए कि प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। इससे पहले सरकार के कुछ मंत्री भी अपना पद छोड़ चुके हैं।

सवाल यह है कि आखिर देश का युवा वर्ग इतना ज्यादा आक्रामक कैसे हो गया? शासन और स्थानीय प्रशासन युवाओं के गुस्से को समय रहते शांत करने में क्यों नाकाम रहा? क्या सरकार को इस बात का इल्म नहीं था कि हालात इस कदर बिगड़ सकते हैं या फिर इसका पूर्व आकलन करने में कहीं कोई चूक हुई है?

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दरअसल, नेपाल सरकार ने पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। सरकार का तर्क था कि देश में सोशल मीडिया मंचों से संबंधित कंपनियां पंजीकरण कराने की अनिवार्यता का पालन करने में विफल रही हैं। इसके बाद बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतर आए और सरकार के इस फैसले का विरोध करने लगे।

सोमवार को विरोध प्रदर्शन का दायरा व्यापक हो गया और काठमांडो में युवाओं की उग्र भीड़ ने जगह-जगह तोड़फोड़ शुरू कर दी। इस दौरान सुरक्षाबलों के साथ प्रदर्शनकारियों की हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें कई लोगों की जान चली गई। इससे युवाओं का आक्रोश बढ़ गया और भीड़ संसद भवन परिसर में घुस गई। यहां तक कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के आवासों को भी निशाना बनाया गया।

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हालात को देखते हुए सरकार ने सोमवार रात को ही सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया और मंगलवार को प्रधानमंत्री ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया। मगर प्रदर्शनकारी अभी भी शांत नहीं हुए हैं और वे सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर रहे हैं।

नेपाल के इतिहास में इसे बहुत बड़ी घटना के रूप में देखा जा रहा है। इससे पहले बांग्लादेश और श्रीलंका में भी इसी तरह जन आक्रोश ने सरकारों को अपदस्थ कर दिया था। इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि नेपाल में विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व ‘जेन जी’ कर रहा है। यह युवाओं का एक ऐसा समूह है, जो पिछले कुछ समय से भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रहा है। इस समूह ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के जरिए सरकार के मंत्रियों और अन्य प्रभावशाली हस्तियों के बच्चों की फिजूलखर्ची तथा उनकी जीवनशैली को लेकर गंभीर सवाल उठाए थे।

दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले को अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज को दबाने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है। इसमें दोराय नहीं कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की आजादी हर हाल में होनी चाहिए, लेकिन क्या हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ ही इसका एकमात्र समाधान है?

बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि नेपाल की सरकार और युवा वर्ग देश एवं समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे और माहौल का शांत कर बातचीत की राह पर लौटेंगे।