जिस दौर में किसी भी मसले पर छाए धुंध को विज्ञान के सहारे साफ कर लिया जाता है, उसमें अंधविश्वास के चलते एक बच्चे की जान ले लेना हैरान करता है। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक तांत्रिक ने दो युवकों के साथ मिल कर एक आठ वर्ष के बच्चे की गला काट कर हत्या कर दी, उसके साथ तंत्र-मंत्र का कर्मकांड किया और शव को गड्ढा खोद कर छिपा दिया।

इन लोगों को लगता था कि ऐसा करने से जंगल में कहीं गड़ा खजाना मिल जाएगा। एकबारगी यह अविश्वसनीय लगता है कि वैज्ञानिक चेतना के विकास के बीच भी क्या ऐसी घटनाएं हो सकती हैं! मगर आज भी ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्हें लगता है कि जादू-टोना, तंत्र-मंत्र या कर्मकांड के सहारे कुछ मनचाहा हासिल किया जा सकता है। सवाल है कि शिक्षा-दीक्षा और वैज्ञानिक पद्धतियों के व्यापक विकास-विस्तार के बावजूद ऐसी स्थिति क्यों कायम है, जिसमें अंधविश्वास का कारोबार करने वालों और इस संजाल में लोगों को फंसा कर उनसे अपराध तक कराने वालों में कोई हिचक नहीं है।

Also Read
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से भारी नुकसान, सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत

सही है कि तकनीक का विस्तार आज दूरदराज के इलाकों तक हो चुका है और इसके जरिए ज्यादातर लोगों तक कई भ्रामक वैज्ञानिक व्याख्याएं पहुंच पाती हैं। मगर जिस विज्ञान और तकनीक के सहारे अज्ञानता पर पड़े पर्दे को हटाने में मदद मिल सकती है, उसी के सहारे कुछ लोग अंधविश्वास फैलाने वाली सामग्री भी परोसते हैं।

आज तकनीकी संजाल का विकास इस तरह हो गया है कि कोई व्यक्ति इंटरनेट पर अपनी रुचि से जो सामग्री देखता-पढ़ता है, उसे उसी से संबंधित चीजें ज्यादा दिखने लगती हैं। इस वजह से भी तकनीक के सहारे विज्ञान को समझने की कोशिश शुरू करने वाला कोई व्यक्ति फिर अंधविश्वास के जाल में उलझ जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 51 ए के अनुसार वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना सरकार की जिम्मेदारी है। अपराध घटित होने पर कानूनी कार्रवाई होती है, मगर यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने में सरकारों की भी दिलचस्पी नहीं दिखती कि अंधविश्वास का जाल फैलाने वाली गतिविधियों को रोका जाए और लोगों के बीच वैज्ञानिक चेतना के विकास के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।