जब भी कोई फरियादी अदालत में पहुंचता है, तो आमतौर पर उसका प्रयास विपक्षी को हराने और सबक सिखाने का होता है। इस तरह वह कई झूठे आरोप भी लगाता है। वैवाहिक विवादों में यह प्रवृत्ति कुछ अधिक दिखाई देती है। पति और पत्नी के बीच का मनमुटाव और रोज का कलह जब असहनीय हो जाता है और संबंध विच्छेद के लिए महिला या उसके परिजन अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं, तो अक्सर उसमें दहेज उत्पीड़न, यौन शोषण, हिंसक व्यवहार, क्रूरता, विवाहेतर संबंध आदि के आरोप लगाए जाते हैं।

चूंकि कानून की इन धाराओं में पुरुषों को कड़ी सजा का प्रावधान है, दहेज उत्पीड़न में पुरुष के परिजनों को भी सजा दी जा सकती है, इसलिए इन धाराओं का जानबूझ कर उपयोग करने का प्रयास किया जाता है। मगर जब कोई महिला पति पर अपनी ही बच्ची के यौन उत्पीड़न का आरोप लगा कर पाक्सो कानून के तहत उसे कठोर सजा दिलाने की कोशिश करती देखी जाए, तो निस्संदेह यह गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे ही एक मामले में सुनवाई करते हुए, जीत हासिल करने के मकसद से ऐसे गंभीर आरोप लगाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर आपत्ति जताई।

एक महिला ने तलाक की अर्जी के साथ अपने पति पर मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न, क्रूरता, दहेज की मांग और बेटी के निजी अंगों को अनुचित तरीके से छूने आदि का आरोप लगाते हुए दो प्राथमिकियां दर्ज कराई थी। मगर अदालत ने जांच में पाया कि महिला ने केवल जीतने और पति को कठोर सजा दिलाने के मकसद से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण यानी पाक्सो कानून का सहारा लेना चाहा था।

चूंकि इस कानून के तहत आरोपी को तुरंत गिरफ्तार करने का प्रावधान है, इसलिए जाहिर है, प्रतिशोध में यह आरोप लगाया गया। अदालत ने इस आरोप को खारिज कर दिया। यह अकेला मामला नहीं है, जब वैवाहिक विवादों अर कटुता के चलते बच्चों को भी अदालत में घसीट लिया जाता है। पति और पत्नी अपने अहंकार और नाहक नाक ऊंची रखने की होड़ में यह भूल जाते हैं कि इससे बच्चों के मन और जीवन पर क्या असर पड़ेगा।

विचित्र स्थिति तब हो जाती है, जब किसी बच्ची की तरफ से उसके पिता पर ही यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया जाए। इस बढ़ती प्रवृत्ति पर दिल्ली उच्च न्यायालय की चिंता इस बात का संकेत है कि वैवाहिक विवादों में निर्णय देते समय अधिक सतर्कता और मानवीय मूल्यों की परवाह की जरूरत होती है।

दहेज प्रताड़ना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर जब दहेज निषेध कानून बनाया गया था, तब उसे भी काफी कठोर रखा गया था। मगर बाद में अदालतों ने पाया कि कई महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर रही हैं, तो अदालतों ने इस मामले में सुनवाई को लेकर सतर्कता बरतनी शुरू कर दी। ऐसा नहीं माना जा सकता कि दहेज निषेध कानून बनने की वजह से देश में दहेज लेने की प्रवृत्ति कम हुई है या दहेज प्रताड़ना के मामले रुक गए हैं, मगर इसे हथियार बना कर एक पक्ष को सबक सिखाने की बढ़ती प्रवृत्ति के मद्देनजर अदालतों ने ऐसे मामलों की सुनवाई में सावधानी बरतनी शुरू कर दी।

इसी तरह पाक्सो कानून के दुरुपयोग की शिकायतें आ रही हैं, तो स्वाभाविक ही अदालतों की चिंता बढ़ रही है। यह कानून काफी संवेदनशील है, बच्चों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित रखने का कारगर उपाय माना जाता है। अगर इसका दुरुपयोग केवल किसी को सबक सिखाने की मंशा से होता है, तो इसका असल मकसद ही खतरे में पड़ जाएगा।