देश में नक्सली हिंसा लंबे समय से एक जटिल समस्या रही है। इससे निपटने के लिए सरकार ने कई स्तर पर मोर्चेबंदी की है और वह अब भी जारी है। मगर सच यह है कि अब भी इस समस्या और इसकी जड़ों से पार पाना एक चुनौती है। हालांकि नक्सली हिंसा का सामना करने के क्रम में पिछले कुछ समय से सुरक्षा बलों को जैसी कामयाबी मिल रही है, उससे कहा जा सकता है कि सरकार इसे खत्म करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ काम कर रही है और इसी मुताबिक जमीनी स्तर पर भी कार्रवाई कर रही है।

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर-बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले के सीमावर्ती इलाकों में बुधवार को सुरक्षा बलों द्वारा सत्ताईस नक्सलियों को मार गिराने की खबर आई। खुफिया जानकारी के बाद घेरेबंदी कर की गई इस कार्रवाई में शीर्ष माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ वसवराजू को भी मार गिराया गया। इसके अलावा, गुरुवार को राज्य के सुकमा जिले में भी नक्सल विरोधी अभियान के दौरान केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के एक कोबरा कमांडों की मौत हो गई और मुठभेड़ में एक नक्सली मारा गया।

कुछ वर्षों से नक्सल विरोधी अभियान में तेजी आ गई है

जाहिर है, देश भर में नक्सली हिंसा का सामना करने और इसे खत्म करने के लिए किए जाने वाले सरकारी दावों के लिहाज से ताजा कार्रवाई को एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। खासतौर पर इसलिए भी कि पिछले कुछ वर्षों से नक्सल विरोधी अभियान में तेजी के साथ छिटपुट स्तर पर नक्सलियों को या तो मार गिराने या फिर उनका समर्पण कराने में सरकार को लगातार सफलता मिल रही थी।

मगर इस बार के मुठभेड़ को सरकार ज्यादा अहम इसलिए मान रही है कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई के तीन दशकों के दौरान यह पहली बार है जब सुरक्षा बलों ने एक शीर्ष स्तर के किसी नेता को मारा है। ताजा अभियान के तहत हाल के दिनों में छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र में चौवन नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया और चौरासी ने आत्मसमर्पण कर दिया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ इस वर्ष अब तक एक सौ अस्सी से ज्यादा माओवादी मारे गए और कई सौ ने आत्मसमर्पण भी किया।

Chhattisgarh Encounter: बीटेक की डिग्री, जूनियर कॉलेज में कबड्डी खिलाड़ी और IED बनाने में एक्सपर्ट…, जानिए अबूझमाड़ एनकाउंटर में मारा गया Basava Raju कौन है?

निश्चित तौर पर नक्सलवाद के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों के मारे जाने, आत्मसमर्पण और उनकी गिरफ्तारी को प्रत्यक्ष नक्सली हिंसा को समाप्त करने की दिशा में अहम उपलब्धि माना जा सकता है। मगर इस समस्या की जड़ें सामाजिक-आर्थिक कारणों में भी छिपी हैं। इसलिए प्रत्यक्ष कार्रवाई के साथ-साथ उनके समाधान या उन्हें दूर करने के लिए भी एक ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम करने की जरूरत है।

मसलन, नक्सली समूहों तक वित्तीय मदद और हथियार पहुंचने के रास्तों या माध्यमों को खत्म करने, नक्सल प्रभावित इलाकों में आम लोगों के बीच विश्वास पैदा करने, उन्हें बुनियादी और भूमि अधिकार देने, मुख्यधारा में लाने, ऋण माफ करने और गरीबी दूर करने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक वंचनाओं से मुक्ति दिलाने जैसे अन्य पहलुओं पर भी स्थायी हल तलाशने की मंशा के साथ काम करने की जरूरत है। नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में चलाए गए अभियानों के बाद अब ऐसी संभावना भी जताई जाने लगी है कि यह समस्या अपने अंतिम चरण में है, लेकिन अगर कुछ बड़ी कामयाबियों के आधार पर भी इस समस्या की जड़ों पर चोट करने को लेकर शिथिलता बरती गई तो शायद यह इसकी जटिलता की अनदेखी साबित होगी।