प्राकृतिक उथल-पुथल के रूप में कोई आपदा तबाही का कारण बनती है, तो वह कई बार आने वाले उससे बड़े खतरे का आहट होती है। शुक्रवार को नेपाल से लेकर उत्तर भारत के एक बड़े इलाके में आए भूकम्प का दायरा जितना बड़ा था और जितनी अवधि के लिए दर्ज किया गया, उसे एक तरह से समय रहते खतरे से बचाव का इंतजाम करने की चेतावनी माना जाना चाहिए। हालांकि इससे जानमाल का नुकसान मुख्य रूप से नेपाल में सीमित रहा और वहां डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों की जान जाने की खबर आई, लेकिन इस बार धरती हिलने की जैसी प्रकृति देखी गई, उससे भविष्य को लेकर कई तरह की आशंकाएं पैदा हुई हैं।

नेपाल से लेकर भारत तक रहा भूकंप का असर

गौरतलब है कि 6.4 तीव्रता वाले इस भूकम्प का केंद्र काठमांडो से तीन सौ इकतीस किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में दस किलोमीटर जमीन के नीचे था। नेपाल में इसका असर सबसे ज्यादा देखा गया, लेकिन भारत में भी दिल्ली सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार जैसे राज्यों में देखा गया, जहां काफी देर तक लोगों ने धरती का हिलना महसूस किया।

पिछले कुछ समय से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जिस तरह लगातार भूकम्प से तबाही के मामले सामने आ रहे हैं, उससे यह आशंका उभरती है कि कहीं धरती के भीतर कोई व्यापक उथल-पुथल तो नहीं हो रही है। शुक्रवार को आए भूकम्प को नेपाल में इससे पहले 2015 में आए विनाशकारी भूकम्प के बाद सबसे घातक और खतरनाक माना जा रहा है।

गौरतलब है कि 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.8 तीव्रता का जबरदस्त भूकम्प आया था, जिसमें जानमाल की व्यापक हानि हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, इसमें करीब दस हजार लोगों की मौत हो गई, दस लाख घरों को नुकसान पहुंचा और करीब अट्ठाईस लाख लोग विस्थापित हुए थे। यों नेपाल में पिछले तीन सालों में 5.5 तीव्रता वाले भूकम्प पांच बार आ चुके हैं। भारत के भी कई राज्यों में पिछले कुछ समय से जिस तरह कम या ज्यादा तीव्रता वाले भूकम्प आ रहे हैं, उसे एक तरह से बचाव के इंतजामों को लेकर सचेत रहने की चेतावनी माना जाना चाहिए।

विडंबना यह है कि भूकम्प एक ऐसी आपदा है, जिसके आने के वक्त के बारे में कोई पक्की और तात्कालिक सूचना हासिल करने या अनुमान लगा पाने की कोई तकनीक विकसित नहीं हो सकी है। ज्यादा तीव्रता वाला भूकम्प आने के बाद यह राहत के स्वरूप पर निर्भर करता है कि कितने लोगों की जान बचाई जा सकी। इससे पहले सिर्फ यही रास्ता बचता है कि इंसान अपनी रिहाइश के ऐसे तौर-तरीके और बचाव के इंतजाम विकसित करे, जिसमें बड़े भूकम्प में भी ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बच सके।

घर बनाते समय हल्के वजन के घर या भूकम्परोधी बुनियाद पर इमारत का निर्माण अचानक आए भूकम्प की स्थिति में बचाव की एक गुंजाइश देता है। इसके साथ जो इलाके भूकम्प के लिहाज से संवेदनशील माने जाते हैं, उसमें भूकम्प के समय घरों में फंसने पर बचाव के छोटे-छोटे इंतजामों को लेकर जागरूकता का प्रसार, खतरे की चेतावनी प्रणाली सहित राहत और बचाव इंतजामों के प्रति पूरी तरह चौकसी बरतना कुछ ऐसे कदम हो सकते हैं, जिनसे जानमाल के नुकसान को कम किया जा सकता है। यह सही है कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता है, लेकिन उससे बचाव के हर संभव उपाय किए जा सकते हैं।