नरेंद्र मोदी सरकार शुरू से सबसिडी कटौती पर जोर देती आ रही है। इसी के मद्देनजर यूपीए सरकार के समय शुरू की गई कई महत्त्वाकांक्षी योजनाओं का नए सिरे से मूल्यांकन किया जाने लगा है। पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को नया स्वरूप देने की बात कह कर उसके मद में धन का आबंटन रोक दिया गया। लाखों लोग महीनों से अपनी मजदूरी की आस लगाए बैठे हैं। अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं। खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के पूर्व मंत्री शांता कुमार की अगुआई में गठित समिति ने इस कानून के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट सौंपी है।

उसने सुझाव दिया है कि खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में कटौती जरूरी है। अभी तक इस कानून से पचहत्तर फीसद ग्रामीण और पचास फीसद शहरी इलाकों की गरीब आबादी को लाभ मिलता है। शांता कुमार समिति ने इस योजना में चालीस फीसद तक कटौती की सिफारिश की है। प्रधानमंत्री ने भारतीय खाद्य निगम को इस रिपोर्ट पर अपनी राय देने को कहा है। अगर सहमति बनी तो खाद्य सुरक्षा कानून में बदलाव के लिए विधेयक तैयार किया जाएगा। दरअसल, इस वक्त सरकार भारी राजकोषीय घाटे के दौर से गुजर रही है। जैसा अनुमान था वैसा राजस्व नहीं जुटाया जा सका है। इसी के चलते विभिन्न मदों में कटौती करने और कर बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत पैंतालीस डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाने और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किए जाने के बावजूद सरकार ने तीन बार में पेट्रोल पर आठ रुपए और डीजल पर छह रुपए उत्पाद शुल्क लगा दिया।

पिछले दिनों खर्चों में कटौती के मद्देनजर जालान समिति ने भी सुझाव दिया था कि सरकार को बड़ी योजनाओं में भारी कटौती करने की जरूरत है। खाद्य सुरक्षा कानून के चलते अभी सरकार को जितना खर्च उठाना पड़ रहा है, उसमें चालीस फीसद की कटौती बड़ी राहत दे सकती है। शांता कुमार समिति ने कटौती के अलावा कुछ और महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर सुझाव पेश किए हैं। उनमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत करना और शहरी इलाकों में गरीबों को दिए जाने वाले अनाज पर सबसिडी का पैसा उनके खाते में डालने का सुझाव अहम हैं। समिति का कहना है कि केवल नगद सबसिडी का रास्ता अपनाने से सरकार को करीब तीस हजार करोड़ रुपए सालाना की बचत होगी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया भी सबसिडी के आलोचक रहे हैं।

ऐसे में ज्यादातर लोगों का कयास यही है कि सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक में भी बदलाव की पहल कर सकती है। मगर कुछ योजनाएं ऐसी होती हैं, जिनमें राजकोषीय घाटे के तर्क पर कटौती करना दूसरी समस्याओं को न्योता देना होता है। भारत लंबे समय से भूख सूचकांक के स्तर पर चिंताजनक स्थिति में है। विकास योजनाओं और अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर के बरक्स यहां भुखमरी और कुपोषण के आंकड़े विश्व बिरादरी के सामने शर्म का विषय हैं। ऐसे में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रहे लोगों के हिस्से के अनाज में कटौती इस समस्या से पार पाने में बड़ा रोड़ा साबित होगी। मौजूदा कानून के प्रभावी ढंग से लागू न हो पाने को लेकर अंगुलियां उठती रही हैं, उन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश जरूर होनी चाहिए। कुछ लोगों के भोजन का आधार समाप्त कर राजकोष कुछ भले भर जाए, इससे सरकार का मानवीय चेहरा नहीं उभरेगा।

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta