अफवाहें जंगल में आग की तरह फैलती हैं। नागपुर में औरंगजेब की कब्र हटाने को लेकर हुए प्रदर्शन के दौरान एक समुदाय की धार्मिक पुस्तक जलाए जाने की अफवाह के बाद जिस तरह हिंसा और आगजनी हुई, उससे जाहिर है कि अफवाह किसी भी शहर और समाज के लिए घातक होती है। इस हिंसा में कई लोग जख्मी हो गए। कोई दोराय नहीं कि इस घटना ने शहर की समरसता पर चोट की है। पिछले कुछ वर्षों में देश में अलग-अलग राज्यों में हुई हिंसा की कई घटनाओं के पीछे किसी न किसी अफवाह की भूमिका पाई गई। मगर नागपुर में हिंसा के पीछे असल मुद्दा औरंगजेब की कब्र का है, जिसे हटाने के लिए पिछले कई दिनों से मांग उठ रही है।

दुर्भाग्यवश न केवल इस पर राजनीति हो रही, बल्कि इस मुद्दे को जिस तरह हवा दी जा रही है, वह चिंता का विषय है। सभी जानते हैं कि इतिहास से जुड़ी धरोहरों को खत्म नहीं किया जा सकता। कोई सभ्य देश अपने इतिहास को मिटाता नहीं है। वह ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने इतिहास को जानें और उससे सबक लें।

नागपुर में हुई हिंसा को इसलिए भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए कि इस तरह की घटना से सामाजिक समरसता को गहरी ठेस पहुंचती है। तीन सौ साल से भी अधिक पुराने मुद्दे पर अचानक विवाद खड़ा करने के पीछे की राजनीति निराशाजनक है। इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया है। दुखद यह कि हिंसा ऐसे शहर में हुई, जहां हर धर्म और समुदाय के लोग वर्षों से सद्भाव के साथ रहते आए हैं।

यह अपनी संस्कृति और विरासत के लिए जाना जाता है। यहां सभी मिल-जुल कर त्योहार मनाते और दुख-सुख साझा करते रहे हैं। मगर कटु सत्य है कि उपद्रवियों का कोई नैतिक मूल्य नहीं होता। उनमें मानवीय संवेदना नहीं होती। नागपुर में हिंसा भड़कने के पीछे कोई पूर्व नियोजित साजिश हो सकती है। यह जांच का विषय है। मगर इस समय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से ऊपर उठने की जरूरत है। नागपुर की खूबसूरती उसके सौहार्द में निहित है। इसे बचाना सभी का दायित्व है।