सरकार ने चालू वित्तवर्ष में खरीफ फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की घोषणा कर दी है। हर वर्ष फसल की बुआई से पहले फसलों की एमएसपी घोषित की जाती है। इस वर्ष धान की फसल के लिए पिछले वर्ष की तुलना में न्यूनतम समर्थन मूल्य उनहत्तर रुपए प्रति कुंतल बढ़ा दिया गया है। इसी तरह कुल चौदह फसलों का एमएसपी घोषित किया गया है, जिनमें दलहनी फसलें और मोटे अनाज शामिल हैं।

सरकार का दावा है कि यह बढ़ोतरी उसके वादे के अनुरूप है, जिसमें उत्पादन लागत का कम से कम पचास फीसद अधिक एमएसपी तय किया जाता है। इसके अलावा, ब्याज सबवेंशन योजना के तहत किसानों को खेती और बागवानी के लिए तीन लाख रुपए तक और कृषि सहायक उद्यमों जैसे पशुपालन और मछली पालन के लिए दो लाख रुपए तक का कर्ज रियायती दर पर उपलब्ध कराने की घोषणा की गई है। कहा जा रहा है कि इससे किसानों को काफी लाभ मिलेगा और कृषि क्षेत्र में सुधार नजर आएगा। पर इन घोषणाओं से किसान संगठन कितने खुश हो पाते हैं, देखने की बात होगी, क्योंकि वे लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य में विसंगतियों और कृषि सुविधाओं में कमी के मुद्दे उठाते रहे हैं।

किसानों के पारिवारिक श्रम की कोई कीमत नहीं आंकी जाती

किसानों की स्थिति बेहतर करने के मकसद से स्वामीनाथन समिति का गठन किया गया था, जिसने सुझाव दिया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून बनना चाहिए। फिर, उत्पादन लागत में किसानों के पारिवारिक श्रम की कीमत भी जोड़ी जानी चाहिए। मौजूदा सरकार ने वादा किया था कि किसानों को उनकी फसलों की कीमत लागत की डेढ़ गुना तक दी जाएगी। मगर न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में किसानों के पारिवारिक श्रम की कोई कीमत नहीं आंकी जाती। फिर, बीज, खाद, कीटनाशक, सिंचाई आदि पर आने वाले खर्च को भी ठीक से नहीं आंका जाता, जिसकी वजह से लागत और अंतिम मूल्य में बहुत अंतर नहीं रह जाता।

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खासकर धान जैसी फसलों पर उत्पादन लागत अधिक बैठती है। फिर भी, न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से किसानों में फसल बोने को लेकर उत्साह बनता है। पर यह शिकायत आम है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य तय होने के बावजूद आढ़ती उस कीमत पर किसानों से फसलें नहीं खरीदते। ज्यादातर मामलों में उससे कम, बल्कि कई बार किसान काफी कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं। इस पर रोक लगाने का कोई उपाय अभी तक नहीं किया गया है। इसीलिए एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की मांग जोर पकड़ती रही है।

सरकार का वादा है कि वह किसानों की आय दोगुनी करेगी। इसके मद्देनजर कई योजनाएं भी चलाई गई हैं। किसान क्रेडिट कार्ड भी उसी में एक है। पर किसानों की दशा में कोई उल्लेखनीय सुधार नजर नहीं आ पा रहा, तो इसकी कुछ वजहें साफ हैं। एक तो, देश के अस्सी फीसद से ऊपर सीमांत किसान हैं, जो किसी तरह अपने परिवार के गुजारे भर की फसल पैदा कर पाते हैं। दूसरे, जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा, बाढ़, तूफान आदि के कारण फसलों के चौपट होने का खतरा दिनोंदिन बढ़ता गया है। बढ़ती गर्मी के कारण उत्पादन पर भी असर पड़ा है। ऐसे में किसान कर्ज से मुक्त नहीं हो पाते। इसीलिए कृषि योजनाएं अपने मकसद तक नहीं पहुंच पातीं। वे अस्थायी राहत ही साबित होती हैं। कृषि संबंधी व्यावहारिक नीतियों की जरूरत बनी हुई है।