अवैध खनन पर रोक लगाना पूरे देश में बड़ी चुनौती बन चुका है। हालांकि कभी-कभी प्रशासन सख्त नजर आता है, मगर खनन माफिया की दबंगई के आगे वह बेबस हो जाता है। इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश के शहडोल में अवैध खनन रोकने गए एक पटवारी को ट्रैक्टर से कुचल कर मार डालना है। वहां की जिलाधिकारी के मुताबिक, उस इलाके में रेत के अवैध खनन की लगातार शिकायतें आ रही थीं, जिसके मद्देनजर खनन माफिया पर नकेल कसने का अभियान चलाया गया।

पटवारी पर ट्रैक्टर चढ़ाकर भाग निकला रेत माफिया

पिछले तीन दिनों में काफी मात्रा में अवैध रेत पकड़ी भी गई। इसी सिलसिले में शनिवार की रात तीन पटवारियों का एक दल दबिश डालने पहुंचा था। रेत से भरे एक ट्रैक्टर को रोका, तो चालक एक पटवारी के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ा कर निकल भागा। उसकी वहीं मौत हो गई। हालांकि प्रशासन इस घटना के बाद आरोपी ट्रैक्टर चालक को गिरफ्तार कर अपनी तत्परता का प्रदर्शन कर रहा है, मगर यह सवाल अपनी जगह है कि अवैध खनन पर रोक लगाना इतना मुश्किल क्यों बना हुआ है। अगर सचमुच प्रशासन इस पर अंकुश लगाना चाहता, तो खनन माफिया इस तरह मनमानी और दबंगई न कर पाता।

मध्य प्रदेश में अफसरों और कर्मचारियों को पहले भी गंवानी पड़ी जान

अवैध खनन मध्यप्रदेश की कोई नई समस्या नहीं है। इससे पहले भी इसे रोकने की कोशिश करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। पिछले साल मध्यप्रदेश में ही अवैध रेत खनन करने वालों पर दबिश डालने गए वन विभाग के कर्मचारियों को माफिया के लोगों ने दौड़ा-दौड़ा कर लाठी-डंडों से पीट कर घायल कर दिया था।

प्रशासन पर मानसिक दबाव और भय पैदा करते हैं खनन माफिया

करीब ग्यारह साल पहले एक पुलिस अधिकारी को भी इसी तरह मार डाला गया था। तब खनन माफिया के खिलाफ सख्त कदम उठाने का संकल्प दोहराया गया था, मगर उसके बाद से अब तक ट्रैक्टर के नीचे कुचल कर सरकारी कर्मचारियों को मार डालने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इस तरह खनन माफिया प्रशासन पर मानसिक दबाव और भय पैदा करने का प्रयास करता है कि अगर उसके धंधे पर रोक लगाने की कोशिश की गई, तो वह खून-खराबे से परहेज नहीं करेगा।

यह मामला केवल रेत खनन तक सीमित नहीं है। पत्थर और कोयले के खनन में भी इसी तरह की दबंगई देखी जाती है। मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि राज्यों से भी इस तरह खनन माफिया के हाथों सरकारी कर्मचारियों के कत्ल की घटनाएं जब-तब सुनने को मिल जाती हैं।

कायदे से रेत, पत्थर, कोयले आदि के खनन का ठेका सरकारें नदियों के जल संग्रहण क्षेत्र, पहाड़ी क्षेत्रों की भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थिति आदि का आकलन करते हुए देती हैं। उसमें रेत, पत्थर, कोयला आदि निकालने की सीमा भी तय की जाती है। मगर ठेकेदार तो खुद अधिक कमाई के लोभ में तय सीमा से अधिक खनन करते ही हैं, उनके समांतर अवैध रूप से खुदाई करने वाले कई गिरोह भी सक्रिय हो जाते हैं।

छिपी बात नहीं है कि ये प्राय: ऐसे लोग होते हैं, जो राजनीतिक और प्रशासनिक रसूख और सांठगांठ से अपना धंधा चलाते हैं। शायद ही कोई राज्य ऐसा हो जहां राजनीतिक संरक्षण में अवैध खनन न चलता हो। इसलिए अगर कभी किसी वजह से खनन माफिया पर नकेल कसने की कोशिश की जाती है, तो वे खून-खराबे पर उतर आते हैं। बेशक मध्यप्रदेश की घटना पर विपक्ष को निशाना साधने का मौका मिल गया है, मगर सब जानते हैं कि बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के ऐसे लोगों पर काबू पाना कठिन ही बना रहेगा।