देश में झोलाछाप डाक्टरों को लेकर अक्सर चिंता जताई जाती रही है। मगर मध्यप्रदेश के दमोह जिले के एक अस्पताल में सामने आई घटना से यही पता चलता है कि कोई ठग न केवल साधारण लोगों को, बल्कि पूरे चिकित्सा तंत्र को कितनी आसानी से झांसे में ले सकता है। दमोह के एक अस्पताल में एक शख्स ने ब्रिटेन के एक मशहूर चिकित्सक के नाम का फर्जी तरीके से इस्तेमाल किया और बड़े आराम से हृदय रोग के कई मरीजों का आपरेशन कर डाला।

उसने जिन लोगों के हृदय का आपरेशन किया, उनमें सात लोगों की जान चली गई। तब जाकर यह मामला किसी तरह खुल सका। मगर संबंधित महकमों को इस बात की जानकारी होने के बावजूद वह फरार हो गया। आरोप है कि मौत के मामलों की सूचना पुलिस को नहीं दी गई, शवों का परीक्षण नहीं कराया गया और मृत व्यक्तियों के परिजनों से मोटे पैसे भी वसूले गए। अगर ये आरोप सही हैं तो इस फर्जीवाड़े में अस्पताल प्रबंधन के शामिल होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।

सरकारी व्यवस्था पर उठ रहे सवाल

सवाल है कि फर्जी पहचान और डिग्री के साथ इतने दिनों तक कोई शख्स कैसे किसी अस्पताल में दिल के मरीजों का आपरेशन करता रहा। उसे वहां जिम्मेदारी सौंपने से पहले क्या उसकी वास्तविकता और डिग्रियों के बारे में कोई छानबीन की गई थी? सिर्फ ब्रिटेन का मशहूर डाक्टर होने का हवाला देने से उसे अस्पताल में इतनी अहम भूमिका कैसे दे दी गई? यह एक ठग की चालाकी हो सकती है, लेकिन सवाल है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग और अस्पताल में किसी डाक्टर को काम पर रखने की जवाबदेही से जुड़े तंत्र ने किस प्रक्रिया के तहत उसे इतनी संवेदनशील भूमिका सौंपी थी।

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ऐसी घटनाएं शहरों से लेकर दूरदराज के इलाकों में भी देखी जाती रही हैं, जहां लोग स्थानीय स्तर पर ऐसे डाक्टरों से इलाज कराते रहे हैं, जिनके पास चिकित्सा की कोई वैध डिग्री नहीं होती। इस समस्या से निपटने के लिए लंबे समय से कवायदें होती रही हैं। पर फर्जी तरीके से एक अस्पताल में बहाल डाक्टर के हृदय का आपरेशन करने के मामले ने समूचे सरकारी तंत्र की जांच प्रक्रिया और उसके कामकाज की शैली पर सवाल उठाया है।