दिल्ली के एक स्कूल में महज दो किताबें न ला पाने की वजह से एक छात्र की बुरी तरह पिटाई की खबर यही दर्शाती है कि सरकार से लेकर अदालतों तक के दिशा-निर्देशों के बावजूद कुछ शिक्षकों के भीतर कुंठा की प्रवृत्ति बदस्तूर कायम है। अफसोसनाक यह भी है कि दिल्ली के शिक्षा माडल का हवाला देने में यहां की आम आदमी पार्टी की सरकार हमेशा बढ़-चढ़ कर दावे करती रहती है, लेकिन सच यह है कि स्कूलों में बच्चों को यातना दिए जाने की सबसे बुनियादी समस्या को खत्म करना अब तक संभव नहीं हो सका है।

खबर के मुताबिक, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के तुकमीरपुर में स्थित एक राजकीय स्कूल में छठी कक्षा के एक विद्यार्थी को एक विषय की किताब घर पर भूल जाने की बात पर शिक्षक ने बच्चे को इस तरह थप्पड़ जड़े कि उसकी गर्दन में सूजन आ गई। बच्चे की तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर मामले ने तूल पकड़ा और थाने में प्राथमिकी दर्ज हुई। अब मामले की जांच होगी, लेकिन सवाल यह है स्कूलों में उत्पीड़न के इस पाठ पर रोक क्यों नहीं लग पा रही है।

गौरतलब है कि स्कूलों में किसी भी कारण से बच्चों को शारीरिक या मानसिक दंड पर सख्त पाबंदी है। शिक्षकों को प्रशिक्षण के दौरान यह बताया भी जाता रहता है कि कक्षा में उन्हें बच्चों के साथ बेहद मानवीय और नरम तरीके से पेश आना चाहिए। किसी भी बात पर पिटाई तो दूर, डांट-फटकार से भी पूरी तरह बचना है।

लेकिन सच यह है कि इसके बावजूद कुछ शिक्षक वैसी बातों पर भी आपा खो देते हैं, जिन्हें मामूली प्रयासों से भी सुलझाया या समझा जा सकता है। दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं, जिनमें कुछ शिक्षक विद्यार्थी के किताब न लाने या किसी अन्य कारण का हल बच्चों को पीटना ही मानते हैं।

दिल्ली में पिछले साल दिसंबर में एक शिक्षिका ने पांचवीं कक्षा की एक बच्ची की न सिर्फ पिटाई की, बल्कि उसे पहली मंजिल से नीचे भी फेंक दिया था। यों देश भर से स्कूलों में कभी गृहकार्य न करने तो कभी किसी अन्य बात पर बच्चों के खिलाफ शिक्षकों के हिंसक बर्ताव की खबरें अक्सर आती रही हैं। ऐसी कुछ घटनाओं में तो बच्चों की जान भी जा चुकी है।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम से लेकर कई अन्य स्तर पर स्कूलों में विद्यार्थियों को मानसिक या शारीरिक दंड देने और भेदभाव को कानूनन प्रतिबंधित किया गया है। खुद सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मसले पर काफी पहले सख्त दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं। लेकिन अब तक स्कूलों में समग्र रूप से इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकी है।

जहां तक दिल्ली का सवाल है, तो आम आदमी पार्टी की सरकार यहां की शिक्षा व्यवस्था का ढिंढोरा देश भर में पीटती रहती है, लेकिन स्कूलों में शिक्षकों के बर्ताव से इतर यह भी बताए जाने की जरूरत है कि खुद सरकार के कितने विधायक, मंत्री या अफसरों के बच्चे दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं और इसके क्या कारण हैं? किसी भी परिस्थिति में बच्चों की पिटाई करने वाला शिक्षक एक तरह से शिक्षण कार्यों की कसौटी पर अपनी अयोग्यता दर्शाता है।

शिक्षण पद्धति के हर स्तर पर विद्यार्थी की किसी कमी को दूर करने के लिए बाकायदा व्यवहार से लेकर पढ़ाई तक के लिए प्रारूप तय है और सभी शिक्षकों को उसका विधिवत प्रशिक्षण दिया जाता है। विडंबना यह है कि इसके बावजूद बच्चों की पिटाई को ही समस्या का हल मानने वाले शिक्षक अपने बुनियादी व्यवहार की गड़बड़ियां भी दुरुस्त नहीं कर पाते हैं।