मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने जिस तरह अब भारत के प्रति अपना नरम रुख जाहिर किया है, वह दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों और अन्य हितों के लिहाज से बेहतर है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में शामिल होने अमेरिका पहुंचे मुइज्जू ने प्रिंसटन विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि हम किसी भी समय, किसी भी देश के खिलाफ कभी नहीं रहे। यह भारत को बाहर करना नहीं था। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई का भी हवाला दिया। उनका यह भी कहना था कि दरअसल, मालदीव के लोगों को विदेशी सेना की उपस्थिति से गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा था।

इस मसले पर मालदीव में लोगों की राय के अपने आधार हो सकते हैं, लेकिन क्या यह मुद्दा भारत के खिलाफ धारणा बनाने और जनता को अपने पक्ष में लाने का जरिया बनाने का वाजिब कारण हो सकता है? ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब पिछले वर्ष मालदीव में हुए चुनाव में मुइज्जू ने अपने पक्ष में जनसमर्थन जुटाने के लिए ‘इंडिया आउट’ यानी ‘भारत बाहर जाओ’ का नारा दिया था और जीत भी हासिल की थी। यही नहीं, राष्ट्रपति बनते ही मुइज्जू ने सबसे पहले भारत सरकार से मालदीव में मौजूद अपने सैनिकों को हटाने के लिए भी कहा था।

मुइज्जू का चीन के प्रति झुकाव

चूंकि उन्हें चीन के प्रति झुकाव रखने वाला माना जाता रहा है, इसलिए उनका भारत के प्रति ऐसा आग्रह रखने को एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया के तौर पर देखा गया। मगर भू-राजनीति के इस दौर में वैश्विक कूटनीति में कब कैसा समीकरण तैयार हो जाए, शक्तियों का केंद्र बदल जाए, कहा नहीं सकता। ऐसे में मुइज्जू ने अगर भारत के प्रति अपने पुराने रुख पर टिके रहने के बजाय अपने तेवर में नरमी लाने की कोशिश की है, तो इसका संदेश समझा जा सकता है।

मुइज्जू जल्दी ही भारत का आधिकारिक दौरा कर सकते हैं। यों भी, पर्यटन या आर्थिक हितों के लिहाज से भारत और मालदीव के बीच संतुलित संबंध रहे हैं। संभव है कि मुइज्जू के नए रुख को उनके पुराने विचारों के आईने में रख कर देखा जाए, लेकिन उनमें आया बदलाव भारत और मालदीव, दोनों के लिए ही अच्छा है।