नई सरकार ने शपथ ले ली है। नई उम्मीदें हैं और चुनौतियां भी बेशुमार हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछली दो सरकारों में भाजपा अकेले बहुमत के पार थी। इस बार जबकि राजग लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है, भाजपा की घटक दलों पर निर्भरता है, उनके साथ तालमेल बनाकर चलने की चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना तीसरा कार्यकाल समझौतावादी जनादेश के साथ शुरू किया है। नतीजतन, मोदी के 72 सदस्यीय नए मंत्रिमंडल में भाजपा के सहयोगियों के 11 मंत्री हैं। साथ ही, देश को मजबूत विपक्ष मिला है। नीतियों को लागू कराने के दौरान सरकार को विपक्ष को साथ लेकर चलना होगा। मजबूत विपक्ष सामने है। इससे विपक्ष और असहमति जताने वाली आवाजों को कुछ राहत मिलेगी। सत्ता और विपक्ष – दोनों के लिए आगे का रास्ता अवसरवादी जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं, बल्कि आम लोगों की उम्मीदों और संघर्षों में निहित राजनीति होनी चाहिए। इस स्थिति ने संयमित प्रशासन की उम्मीद जगाई है।
राज्यों में प्रभावी दलों के साथ सत्ता साझा करने से मोल-भाव की गुंजाइश बढ़ जाती है। लेकिन देश के सामने मोदी की सत्ता की मूल प्रकृति सामने है, जो फैसलों में दृढ़ संकल्प वाली है। गठबंधन धर्म इस प्रकृति को लेकर एक गहन विश्लेषण की मांग करेगा। गठबंधन सहयोगियों की राज्य स्तरीय राजनीति के नजरिए से देखा जाए तो कम से कम अगले चरण के विधानसभा चुनावों तक तस्वीर मोदी के पक्ष में है। तेलगुदेसम पार्टी अपने राज्य में आराम से बैठी हैै। जद (एकी) को अगले साल विधानसभा चुनावों तक सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा की जरूरत है। लोजपा के चिराग पासवान और फिर से उभर रहे राजद की चुनौती सामने है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे भाजपा के दम पर मुख्यमंत्री बने हुए हैं। जद (सेकु), रालोद और राकांपा जैसे अन्य गठबंधन सहयोगी अपने फायदे के लिए सौदेबाजी से परे कोई प्रभाव नहीं डाल सकते।
देश में बीते तीन दशकों के आर्थिक उदारीकरण के दौर में लोगों की आकांक्षाओं में वृद्धि हुई है। बीते 10 वर्षों में मोदी सरकार के कार्यक्रमों ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया है। विकसित भारत का नारा लोगों के सामने है। लेकिन यह हकीकत भी है कि बुनियादी ढांचे के निर्माण, नए रोजगार पैदा करने, कौशल विकास और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने जैसे काम अभी शुरू ही हुए हैं। कई मोर्चों पर नीतियां अभी तय हुई हैं। जाहिर है, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां बड़ी हैं। सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अधिकांश बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में तेजी से बढ़ने की बात रखी है। इसका चिंताजनक पहलू यह भी है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अन्य क्षेत्रों में विकास के साथ कदम मिलाकर नहीं चल पा रही है। मनरेगा योजनाओं पर निर्भरता भी बढ़ी है। स्पष्ट है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सेहत को बहाल करना ही होगा और बुनियादी स्तर पर ही बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। जाहिर है, जनप्रतिनिधियों को चुन कर संसद में भेजने वाला मतदाता उम्मीद करेगा कि लोकतांत्रिक ढांचे में सभी अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाएंगे। बिना किसी राग और द्वेष, भय एवं पक्षपात के।