जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को लेकर परस्पर विरोधी बातें सुनने को मिलती रही हैं। सरकार का दावा है कि अब वहां आतंकवाद खत्म होने को है। कुछ दिनों पहले गृह मंत्रालय ने दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद काफी कम हो गया है, अब केवल कुछ इलाकों तक सिमट कर रह गया है। जल्दी ही उसे समाप्त कर दिया जाएगा। प्रधानमंत्री ने भी वही बात दोहराई है। उन्होंने डोडा से विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री के दौरे से पहले ही वहां आतंकी हमला हुआ, जिसमें एक अधिकारी समेत दो सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए। सेना के जवाबी हमले में तीन आतंकवादियों को मार गिराया गया। घाटी में सक्रिय विपक्षी राजनीतिक दलों का आरोप है कि पिछले दस वर्षों में वहां आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं। बहुत सारे निरपराध लोग मारे गए हैं, अनेक सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं।
इससे पहले आतंकवादी घटनाएं इतनी नहीं होती थीं, केंद्र सरकार ने तब स्थानीय लोगों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया था और आतंकी गतिविधियां काफी कम हो गई थीं। मगर सरकार इन बातों को सिरे से खारिज करती है। हालांकि दो वर्ष पहले गृह मंत्रालय ने भी माना था कि विशेष दर्जा खत्म होने और राज्य में कर्फ्यू के दौरान स्थानीय युवाओं की आतंकी समूहों में भर्ती बढ़ी है।
नोटबंदी के समय सरकार ने आंतकियों की कमर तोड़ने का किया था दावा
पहले नोटबंदी के समय दावा किया गया था कि इससे आतंकी समूहों की कमर टूट जाएगी। उन्हें वित्तीय मदद मिलनी बंद हो जाएगी। फिर अनुच्छेद तीन सौ सत्तर हटने के बाद कहा गया कि इससे दहशतगर्दी पर लगाम लग जाएगी। मगर हकीकत यह है कि करीब दो वर्ष तक सघन तलाशी और कड़ी पहरेदारी के बावजूद आतंकी घटनाओं पर कोई उल्लेखनीय अंकुश लगा नजर नहीं आया। फिर जैसे-जैसे वहां जनजीवन सामान्य बनाने के लिए कुछ ढिलाई दी जाने लगी, दहशतगर्दी एकदम से बढ़नी शुरू हो गई। आतंकवादियों ने अपने हमले के तरीके बदल लिए। कभी वे बाहरी लोगों और कश्मीरी पंडितों पर लक्षित हिंसा करने लगे, तो कभी सेना के काफिले पर घात लगा कर हमला।
सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हो रहे हमले
पिछले पांच वर्षों में थोड़े-थोड़े समय बाद सुरक्षाबलों पर घात लगा कर हमले बढ़े हैं। उन हमलों की समीक्षा से यह भी तथ्य सामने आया कि उनके पास बाहर से अत्याधुनिक हथियार पहुंचने लगे हैं, वे सुरक्षाबलों के सूचना तंत्र में सेंध लगाने के नए तरीके तलाश चुके हैं। ऐसे में यह सवाल बार-बार पूछा जाता रहा है कि आतंकी समूहों को वित्तीय मदद पहुंचाने वालों और बाहर से हथियार वगैरह मुहैया कराने वालों पर शिकंजा कसे जाने के बावजूद उन तक ये चीजें कैसे पहुंच जा रही हैं।
केंद्र सरकार का शुरू से दावा रहा है कि वह घाटी में आतंकवाद समाप्त करके ही दम लेगी। इसके लिए निस्संदेह उसने सख्त कदम भी उठाए, सीमा पार से होने वाली घुसपैठ कम हो गई। मगर आतंकी घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रहीं, तो इसके पीछे बड़ा कारण है कि दहशतगर्दों को स्थानीय लोगों का समर्थन मिल रहा है और वहां के युवाओं को हथियार उठाने से रोका नहीं जा पा रहा। घाटी में आतंकवाद नासूर बन चुका है, हर नागरिक वहां अमन चाहता है, आतंकवाद को किसी भी रूप में खत्म देखना चाहता है। मगर केवल सरकारी दावों में इसके खत्म होने की बात कहने से हकीकत नहीं छिपती, इसे जमीन पर भी दिखना चाहिए।
