समाज में लैंगिक समानता और बेहतर समाज के निर्माण के लिए लड़कियों का शिक्षित होना जरूरी है। एक लड़की का शिक्षित होना उसे स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने तथा परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान देने में सक्षम बनाता है। शिक्षा से वंचित लड़कियां न तो अपने अधिकारों को समझ पाती हैं और न ही उनके सामाजिक जीवन का स्तर ऊपर उठ पाता है। वे घरेलू कामकाज के दायरे में ही सिमट कर रह जाती हैं। बालिका शिक्षा को लेकर सरकार की ओर से कई योजनाएं लागू की गई हैं, लेकिन धरातल पर उनका प्रभाव व्यापक स्तर पर नजर नहीं आता है।
मगर, इसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ सरकार पर डालना भी उचित नहीं होगा। इसके लिए सामाजिक स्तर पर भी सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। भारतीय गैर-सरकारी संस्था ‘एजुकेट गर्ल्स’ ने इस दिशा में सराहनीय कार्य किया, जिसके लिए उसे एशिया का नोबेल माने जाने वाले रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से नवाजा गया है। इस संस्था की यह उपलब्धि सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले अन्य संगठनों के लिए भी प्रेरणास्रोत है।
अन्य सामाजिक संस्थाओं और संगठनों को भी आगे आना चाहिए
यह बात सच है कि आज के आधुनिक दौर में भी हमारे समाज में ऐसी रूढ़िवादी सोच पल रही है, जो लड़कियों की शिक्षा को तवज्जो देने से रोकती है। खासकर ग्रामीण इलाकों में इस धारणा की बेड़ियों को तोड़कर लड़कियों को निरक्षरता के अंधेरे से बाहर निकालने और उनका शिक्षा के उजाले से साक्षात्कार कराने के लिए व्यापक स्तर पर प्रयास किए जाने की जरूरत है। ‘एजुकेट गर्ल्स’ संस्था ने इस तरह के सफल प्रयासों की एक नई मिसाल पेश की है। इस संस्था ने राजस्थान से शुरूआत करते हुए देशभर में सबसे जरूरतमंद समुदायों की पहचान की, स्कूल न जाने वाली लाखों लड़कियों को कक्षा में पहुंचाया और उन्हें उच्च शिक्षा एवं रोजगार पाने के लिए सक्षम बनाया।
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ऐसे ही अन्य सामाजिक संस्थाओं और संगठनों को भी आगे आना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि बालिका शिक्षा को लेकर परिणामोन्मुख योजनाएं बनाई जाएं और उन्हें सही मायने में लागू किया जाए। क्योंकि, शिक्षा न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि एक बेहतर परिवार एवं समाज और राष्ट्र निर्माण में भी उनकी भूमिका सुनिश्चित करती है।