देश के ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर आबादी के लिए रोजी-रोटी का इंतजाम एक बड़ी चुनौती रही है। लंबे समय तक इस समस्या के बने रहने का नतीजा यह हुआ कि विकास एक तरह से विभाजित रहा और एक बड़ा तबका मुख्यधारा में शामिल होने की कोशिशों से भी वंचित रहा।

मगर जब से गारंटी के रूप में ग्रामीण इलाकों में रोजगार मुहैया कराने की पहल हुई है, उसके बाद से एक बड़ा फर्क दर्ज किया गया। करीब बीस वर्ष पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी मनरेगा लागू हुआ, तो उसके तहत वर्ष में सौ दिन काम की व्यवस्था से गांव-देहात में रहने वाले परिवारों के सशक्तीकरण में उल्लेखनीय मदद मिली।

मनरेगा की अहमियत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कई बार इसे दुनिया भर में एक सीखने लायक कार्यक्रम के तौर पर भी देखा गया। अब केंद्र सरकार ने मनरेगा का रूप बदल कर उसका नाम ‘विकसित भारत-रोजगार गारंटी व आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी ‘वीबी- जी राम जी’ रखा है और उसमें अब कुछ नए प्रावधान किए गए हैं। इससे संबंधित विधेयक गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गया।

गौरतलब है कि नई प्रस्तावित व्यवस्था मनरेगा का ही नया स्वरूप होगी, जिसमें ग्रामीण परिवार को सौ दिन के बजाय एक सौ पच्चीस दिनों के रोजगार की गारंटी की बात की गई है। इसके अलावा, खर्च वहन करने, पारिश्रमिक भुगतान और खेती के दिनों के संदर्भ में नए प्रावधानों की वजह से इस योजना के किसानों और मजदूरों, दोनों के लिए काफी फायदेमंद साबित होने की उम्मीद की जा रही है।

VB-G RAM G के तहत राज्य सरकारों को भी करना होगा खर्च

मनरेगा के तहत जिन लोगों को काम मिलता है, उनकी मजदूरी का लगभग पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती रही है, जबकि सामान आदि का खर्च एक निश्चित अनुपात में राज्य सरकारें उठाती हैं। अब कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़ कर ‘बीवी- जी राम जी’ के तहत होने वाले कुल खर्च का साठ फीसद केंद्र सरकार वहन करेगी और चालीस फीसद राज्य सरकारें उठाएंगी।

इस योजना के अंतर्गत खेतों में बुआई और कटाई के मौसम में साठ दिनों के दौरान मजदूरों को काम नहीं मिल सकेगा, ताकि खेती-किसानी के काम के लिए मजदूरों की कमी न हो। इसके अलावा, इस काम में भ्रष्टाचार पर लगाम के लिए मजदूरी के भुगतान में बायोमेट्रिक और अन्य आधुनिक तकनीक की मदद ली जाएगी।

जाहिर है, बदलावों के बाद अगर रोजगार गारंटी की व्यवस्था ग्रामीण इलाकों के मजदूरों के लिए सहायक सिद्ध हुई, तो बेशक इसे एक सकारात्मक कदम माना जाएगा। देश की ग्रामीण आबादी के हित में प्रथम दृष्टया यह योजना एक बेहतर पहल लगती है, लेकिन इस संदर्भ में विपक्षी दलों की ओर से कई आशंकाएं भी जताई गई हैं।

नतीजे घोषित दावों के मुकाबले उलट भी आ सकते हैं

अगर ग्रामीण इलाकों में काम करने की जगह तय करने से लेकर अन्य मामलों में यह योजना केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित और उसकी शर्तों पर आधारित होगी, तो खर्च का जिम्मा राज्यों पर आएगा। ऐसे में इसके नतीजे घोषित दावों के मुकाबले उलट भी आ सकते हैं और इसका काम के अधिकार पर विपरीत असर पड़ सकता है।

ग्रामीण इलाकों में रोजगार गारंटी लागू होने के बाद से मनरेगा की अहमियत छिपी नहीं रही है। खासतौर पर कोरोना महामारी के दौरान जब देश भर में गरीब तबकों के लोग भयावह अभाव से जूझ रहे थे, तब मनरेगा उनके लिए जीवन-रेखा साबित हुआ। ऐसे में यह देखने की बात होगी कि नए स्वरूप में ग्रामीण इलाकों के गरीब तबकों के लिए रोजगार गारंटी की नई व्यवस्था कितनी सहायक साबित होगी।

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