किसी बीमारी में दवा जीवनदायिनी हो सकती है। ऐसे में मरीज की जान बचाने के लिए उसके परिजन दवा का बंदोबस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। मगर जब कोई दवा ही मौत का कारण बन जाए, तो इसे लापरवाही या जान से खिलवाड़ नहीं तो और क्या कहा जाएगा! मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसा ही हुआ है, जहां खांसी की दवा से कई बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं। शासन-प्रशासन की ओर से इन मामलों की गहन जांच कराने का आश्वासन दिया गया है।
इसके अलावा, एक चिकित्सक को गिरफ्तार और कुछ अन्य अधिकारियों को निलंबित किया गया है। साथ ही इस दवा की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और संबंधित कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। सवाल यह है कि ऐसी कार्रवाई के लिए अक्सर किसी बड़े हादसे का इंतजार क्यों किया जाता है? दवाओं की गुणवत्ता जांच नियमित तौर पर क्यों नहीं की जाती और जो दवाएं बच्चों के लिए प्रतिबंधित हैं, वे बाजार में बिना रोक-टोक कैसे बिक रही हैं?
देश में किसी दवा की वजह से कई जानें चली गईं
यह कोई पहली बार नहीं है कि देश में किसी दवा की वजह से कई जानें चली गईं। इससे पूर्व भी इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं। विडंबना यह है कि न तो सरकार एवं प्रशासन और न ही स्वास्थ्य संस्थानों एवं वहां कार्यरत अधिकारियों के स्तर पर ऐसी घटनाओं से कोई सबक लिया जाता है। मध्य प्रदेश में जिस चिकित्सक को गिरफ्तार किया गया है, उस पर आरोप है कि वह सरकारी सेवा में होने के बावजूद एक निजी क्लिनिक में भी अपनी सेवाएं दे रहा था और बच्चों के लिए इस दवा के इस्तेमाल का परामर्श देता था।
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सवाल है कि आरोपी चिकित्सक के सरकारी सेवा के साथ निजी क्लीनिक में काम करने पर स्वास्थ्य विभाग ने अब तक कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया? दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है किस दवा के विभिन्न आयु-वर्ग के मरीज पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं, इसकी जानकारी क्या चिकित्सकों को नहीं दी जाती है? या फिर चिकित्सक और दवा कंपनियों के बीच सांठगांठ से इस तरह का गोरखधंधा फल-फूल रहा है? सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
तमिलनाडु के औषधि नियंत्रक विभाग ने अपनी जांच में इस दवा के निर्माण में मिलावट होने की पुष्टि की थी
खबरों के मुताबिक, मध्य प्रदेश सरकार ने तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखकर वहां स्थित संबंधित दवा निर्माता कंपनी के खिलाफ जांच करने का आग्रह किया था। इसके बाद तमिलनाडु के औषधि नियंत्रक विभाग ने अपनी जांच में इस दवा के निर्माण में मिलावट होने की पुष्टि की थी। जांच रपट में कहा गया कि इसमें 48.6 फीसद ‘डायथिलीन ग्लाइकाल’ पाया गया, जो जहरीला रसायन है और सेहत के लिए घातक साबित हो सकता है। सवाल है कि इस तरह की खतरनाक दवा को बाजार में बिक्री की अनुमति कैसे दे दी गई? क्या किसी दवा के बाजार में आने से पहले किया जाने वाला नमूना परीक्षण ही काफी है?
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अगर बाद में उस दवा के निर्माण में गुणवत्ता मानकों को दरकिनार किया जाता है और उसके सेवन से किसी की जान चली जाती है, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? कायदे से बाजार में उपलब्ध दवाओं की गुणवत्ता को लेकर समय-समय पर जांच होनी चाहिए और गड़बड़ी मिलने पर जवाबदेही तय कर आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि लोगों की जान से खिलवाड़ न हो। इस बात के लिए भी जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरूरत है कि कोई बीमारी होने पर आम लोग चिकित्सकों की सलाह से ही दवा लें। साथ ही गरीब और वंचित तबकों की भी अच्छी चिकित्सा प्रणाली तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना सरकार का प्राथमिक दायित्व है।