मणिपुर पहले ही जातीय टकराव और हिंसा के दौर में झुलस रहा है और अब तक वहां शांति के लिए की गई तमाम कवायदों का कोई ठोस हासिल सामने नहीं आया है। करीब पौने दो वर्ष पहले वहां शुरू हुई हिंसा और उसके बाद अराजकता का माहौल आज भी कमोबेश जारी है और उसके हल का रास्ता सरकार नहीं निकाल सकी है। मणिपुर में लगातार जारी अशांति के मुख्य कारणों को संबोधित करके जहां उसका कोई समाधान निकालने के लिए सभी स्तरों पर हर संभव उपाय किए जाने चाहिए थे, वहां हालत यह है कि अब राज्य में टकराव के नए कारक पैदा हो रहे हैं, नए क्षेत्रों में हिंसा का विस्तार हो रहा है और उससे हालात और ज्यादा बिगड़ने की आशंका खड़ी हो रही है।
सवाल है कि केंद्र से लेकर राज्य तक का समूचा सरकारी तंत्र वहां के ज्यादातर इलाकों में पसरी अराजकता की स्थिति को संभालने और शांति कायम करने के प्रयासों में किन वजहों से नाकाम साबित हुआ है। इसका कारण सिर्फ हालात की जटिलता है या समस्या का हल निकालने के प्रति दूरदर्शिता की कमी और उदासीनता? आखिर क्या वजह है कि मणिपुर में मैतेई और कुकी-जो के अलावा दूसरी जनजातियां भी अलग मुद्दों पर आमने-सामने खड़ी हो रही हैं?
हमार और जोमी समुदायों के बीच हुई थी शुरुआती झड़प
गौरतलब है कि राज्य के अशांत चूड़ाचांदपुर जिले में कुछ दिन पहले हमार समुदाय के एक नेता पर हमला होने के बाद जोमी समुदाय के साथ हमार समुदाय के लोगों की झड़पें शुरू हो गई थीं। हालांकि इसके बाद हमार और जोमी समुदायों के शीर्ष निकायों ने पहल की और उसके बाद दोनों पक्षों के बीच शांति के लिए समझौता हुआ। मगर यह अफसोसनाक है कि उस समझौते पर कुछ देर अमल करना भी जरूरी नहीं समझा गया और दोनों समुदायों के बीच फिर हिंसा होने लगीं, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई।
सुनीता विलियम्स ने बनाया नया कीर्तिमान, अंतरिक्ष में किए कई अनुसंधान और प्रयोग
इस बीच जिले के उच्च अधिकारियों और खुद कुकी-जो समुदाय के विधायकों ने शांति के लिए अपील की। मगर इन सबका कोई असर नहीं पड़ा। सवाल है कि हिंसक टकराव में शामिल दोनों पक्षों के बरक्स सरकारी तंत्र को क्या इस बात की आशंका नहीं थी कि वहां जैसा माहौल अभी बना हुआ है, उसमें एक मामूली-सी चिंगारी भी फिर से हिंसा की आग को भड़का दे सकती है?
अलग मुद्दों के साथ नए समुदायों के बीच हो रहा है टकराव
हिंसा और अराजकता को पूरी तरह रोकने और खत्म करने के प्रति सरकार की उदासीनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक छोटे राज्य में हिंसा की शुरूआत के अब दो वर्ष होने जा रहे हैं और आज भी मुख्य समस्या के हल का कोई रास्ता सामने नजर नहीं आ रहा है। निश्चित रूप से यह स्थिति टकराव और हिंसा में शामिल समुदायों के बीच असंतोष के कायम रहने का नतीजा है, लेकिन समस्या का हल निकालने से लेकर हिंसा पर काबू पाने के सभी अधिकार हाथ में होने के बावजूद सरकार और उसका समूचा तंत्र इस मसले पर किन वजहों से पूरी तरह नाकाम दिखता है?
युद्ध विराम को लेकर रूस ने अमेरिका के सामने रखी शर्तें, यूक्रेन की जड़ों पर कर दिया प्रहार
मणिपुर में अब राष्ट्रपति शासन लागू है। मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के मसले पर मैतेई और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा पर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से उठाए गए तमाम प्रयासों और दावों के बावजूद अब तक पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। अब अलग मुद्दों के साथ नए समुदायों के बीच जिस तरह का टकराव खड़ा हो रहा है, अगर समय रहते उसे थामने के लिए ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ काम नहीं किया गया तो इसके नतीजों का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।