मणिपुर में हिंसा की ताजा घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि वहां शांति बहाल करने और समस्या का कोई ठोस हल निकालने के लिए अब तक जितने भी प्रयास किए गए, उनके पीछे दूरदर्शिता की कमी रही। हैरानी की बात यह है कि राज्य में हिंसा की शुरूआत के बाद मई में अब दो वर्ष हो जाएंगे। इसके कारण आमतौर पर स्पष्ट रहे हैं कि यह टकराव मैतेई समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के मसले से पैदा हुआ। इसके बावजूद राज्य से लेकर केंद्र सरकार की ओर से ऐसा कोई हल या प्रस्ताव सामने नहीं आ सका है, जिस पर संबंधित पक्षों के बीच सहमति बने और राज्य में शांति कायम हो।
यह एक तरह से राज्य सरकार की नाकामी ही थी कि चौतरफा और लगातार सवाल उठने के बीच वहां के मुख्यमंत्री को आखिर इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद लागू राष्ट्रपति शासन में भी हिंसक घटनाओं पर काबू पाने और स्थिति में सुधार के मोर्चे पर अब तक आश्वासनों से आगे बढ़ कर कुछ भी ऐसा नहीं किया जा सका है, जो जमीनी स्तर पर स्थानीय लोगों और खासतौर पर हिंसा प्रभावित समुदायों के भीतर विश्वास पैदा करे और वे राज्य में शांति बहाली में भागीदारी निभाएं।
मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद लगा दिया गया है राष्ट्रपति शासन
गौरतलब है कि मणिपुर के कांगपोकपी में शनिवार को इंफल-दीमापुर उच्च मार्ग पर कुकी समुदाय और सुरक्षाबलों के बीच झड़प हुई, जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई। वहीं इस टकराव में सत्ताईस से ज्यादा जवान घायल हो गए। दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में सभी सड़कों पर वाहनों की स्वतंत्र आवाजाही को लेकर एक निर्देश जारी किया था। राज्य में सबसे ज्यादा प्रभावित समुदाय के स्थानीय लोगों ने निर्देश का व्यापक विरोध किया, जिसके बाद तनाव बढ़ गया और अब फिर अराजकता की स्थिति में कांगपोकपी में कई इलाकों में कर्फ्यू लगाने की नौबत आई।
यह स्थिति तब है, जब मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है, वहां के राज्यपाल ने उपद्रवियों से सभी लूटे गए हथियार जमा करने को कहा है। अब तक पांच सौ से ज्यादा हथियार जमा भी किए जा चुके हैं। मगर यह साफ है कि हिंसा को थामने और उससे भी ज्यादा समस्या के हल के लिए कुछ भी ऐसा ठोस नहीं किया गया है, जिससे स्थायी रूप से शांति कायम करने का कोई रास्ता निकले।
प्रभावित लोग और समुदाय शांति की उम्मीद में होंगे
सही है कि सड़कों पर बेरोकटोक आवाजाही सुनिश्चित करना स्थिति को सामान्य बनाने में एक सहायक कदम हो सकता है। लंबे समय से राज्य में जारी हिंसा के बीच संभवत: वहां के सभी प्रभावित लोग और समुदाय शांति की उम्मीद में होंगे। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि अगर यह समस्या के मूल कारणों को दूर किए बिना सतह पर कुछ किया जाता है, तो इसके नतीजे अनुकूल नहीं भी आ सकते हैं। ताजा हिंसा के बाद स्थानीय कुकी संगठनों की ओर से जैसी प्रतिक्रिया आई है, वह इसी का उदाहरण है।
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कुकी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन की ओर यह कहा गया कि वे शांति का समर्थन करते हैं, लेकिन इस तरह के उपायों से नाराजगी और संघर्ष की स्थिति पैदा होगी। राज्य में हिंसा की शुरूआत के करीब पौने दो वर्ष बाद भी अगर हालात में कोई सुधार आता नहीं दिख रहा है, तो यह सरकारों के भीतर ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को ही दर्शाता है। जब तक स्थायी शांति के लिए राजनीतिक स्तर पर ठोस समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक तात्कालिक उपायों का शायद कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आएगा।